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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
सव्वलोगो वा । पंचिं०तिरिक्ख ० अपज ० - मणुसअपज्ज० सव्वपयडि० उक्क० अणुक्क० लोग० असंखे० भागो सव्वलोगो वा ।
$ २२९. मणुसतिये सम्म० - सम्मामि० खेत्तं । सेसपय० उक्क० लोग० असंखे॰भागो । अणुक्क० लोग० असं० भागो सव्वलोगो वा ।
$ २३०. देवेसु सम्म० - सम्मामि० ओघं । मिच्छ० - सोलसक० - अट्ठणोक ० उक्क० अणुक्क० लोग० असंखे० भागो अट्ठ णव चोद्दस० देसूणा । णवरि हस्स - रदीर्ण उक्क० लोग० असंखे० भागो अट्ठ चोदस० देसूणा ।
$ २३१. भवण ० - वाणवें - जोदिसि० मिच्छ० - सोलसक० - अट्टणोक० उक्क० अणुक्क० लोग • असंखे० भागो अद्धट्ठा वा अट्ठ णव चोहस० देसूणा । सम्म०सम्मामि० उक्क० अणुक्क० लोग० असंखे० भागो अद्धट्ठा वा अट्ठ चोहस० देसूणा । $ २३२. सोहम्मीसाण० मिच्छ० - सोलसक० - अट्ठणोक० उक्क० अणुक्क० लोग० असंखे ० भागो अट्ठ णव चोद्दस भागा वा देसूणा । सम्म०-२ - सम्मामि० ओघं । सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
$ २२९. मनुष्यत्रिक में सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्रके समान है । शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकांने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
$ २३०. देवोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की अपेक्षा भंग ओघके समान है । मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकषायोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रभाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
$ २३१. भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकषायोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रस नालीके चौदह भागों में से कुछ कम साढ़े तीन भाग, कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम साढ़े तीन भाग और कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
$ २३२. सौधर्म और ऐसान कल्पमें मिध्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकषायों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा भंग ओघके समान है । सनत्कुमारसे लेकर सहस्रारकल्प