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गा० ६२]
उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए पोसणं २२७. आदेसेण णेरइय० मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० उक्क० अणुक्क० लोग० असंखे भागो छ चोदस० देसूणा। सम्म०-सम्मामि० खेत्तं । एवं विदियादि सत्तमा त्ति । णवरि सगपोसणं । पढमाए खेत्तं ।। ____२२८. तिरिक्खेसु मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० उक्क० लोग० असंखे०भागो छ चोद्दस० देसूणा । अणुक्क० सव्वलोगो । सम्म० उक्क० अणुभागु० खेत्तं । अणुक्क० लोग० असंखे०भागो छ चोदस० देसूणा । सम्मामि० उक्क० अणुक्क० खेत्तं । इत्थिवेदपुरिस० ओघं । पंचिंदियतिरिक्खतिये सम्म०-सम्मामि० तिरिक्खोघं । सेसपयडि. उक्क० लोग० असंखे०भागो छ चोदस० देसूणा । अणुक० लोग० असंखे०भागो होते हैं, अतः उनके वर्तमान और अतीत स्पर्शनको ध्यानमें रखकर उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका स्पर्शन सर्वलोकप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक सर्व संक्लेश परिणामवाले शतार-सहस्रार कल्पके देव हैं, अतः इनके वर्तमान और अतीत स्पर्शनको ध्यानमें रखकर इन प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। आगे गति मार्गणाके उत्तर भेदोंमें अपने-अपने स्वमित्व और मार्गणाओंके स्पर्शनको ध्यानमें रखकर उक्त न्यायसे प्रकृत स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए। विशेष वक्तव्य न होनेसे अलगसे स्पष्टीकरण नहीं करेंगे।
$२२७. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन जानना चाहिए। पहली पृथिवीमें क्षेत्रके समान स्पर्शन है।
$ २२८. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वक उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अपेक्षा भंग ओघके समान है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा भंग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और