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________________ www M गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए एगजीवेण अंतरं सहस्सारे अरदि-सोग० देवोघं । णवरि भवण०-याणवें०-जोदिसि०-सोहम्मीसाण. इत्थिवेद० उक्क० जह० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदो० देसूणाणि पलिदो० सादिरे० पं० सा. पणवण्णं पलिदो० देसूणाणि । उवरि इत्थिवेदो पत्थि । २०४. अणुदिसादि० सव्वट्ठा त्ति सम्म०-पुरिसवेद० उक्क० जह० एगस०, उक्क० सगढिदी देसूणा । अणुक्क० जह० एगसमओ, उक्क० वे समया । एवं बारसक०-छण्णोक० । णवरि अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवं जाव० । * जहण्णाणुभागुदीरगंतरं केसिंचि अत्थि, केसिंचि णत्थि। $ २०५. कुदो ? खवगसेढीए दसणमोहक्खवणाए च लद्धजहण्णसामित्ताणमंतराभावणियमदंसणादो सेसाणमंतरसंभबोवलंभादो। संपहि एदस्स विवरणमुच्चारणामुहेण बत्तइस्सामो । तं जहा २०६. जह० पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०अणंताणु०४ जह० जह० अंतोमु०, उक्क० उवड्डपोग्गलपरियट्टं । अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० बेछावहिसागरो० सादिरेयाणि । णवरि अणंताणु०४ अजह० जह० एगस० । विशेषता है कि भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और सौधर्म-ऐशान कल्पके देवोंमें स्त्रीवेदके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल क्रमसे कुछ कम तीन पल्योपम, साधिक एक पल्योपम, साधिक एक पल्योपम और कुछ कम पचवन पल्योपम है । ऊपर स्त्रीवेद नहीं है । २०४. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्म्व और पुरुषवेदके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है। इसी प्रकार बारह कषाय और छह नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूतेप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मागेणा तक जानना चाहिए। __* जघन्य अनुभागके उदीरकका अन्तरकाल किन्हींके होता है और किन्हींका नहीं होता। २०५. क्योंकि क्षपकौणिमें और दर्शनमोहनीयकी क्षपणामें जिनका जघन्य स्वामित्व प्राप्त हुआ है उनके अन्तराभावका नियम देखा जाता है। शेषके अन्तरकालका सम्भव उपलब्ध होता है । अब इस सूत्रका विवरण उच्चारणाके अनुसार करते हैं । यथा २०६. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपाधपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। अजघन्य अनुभागके उदीरक का जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक दो छयासठ सागरोपम है। इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है । इसीप्रकार आठ कषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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