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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदोग ७ क०-छण्णोक० उक्क० अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु०।। $२०२. मणुसतिये पंचिंदियतिरिक्खतियभंगो । णवरि पच्चक्खाण०४ अणुक्क० ओघं । मणुसिणीसु इत्थिवेद० अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । $ २८३. देवेसु मिच्छ०-अणंताणु०४ उक्क० जह० एगस०, उक्क० अट्ठारस सागरो० सादिरेयाणि । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० एक्कत्तीसं सागरो० देसू णाणि । एवं बारसक०-छण्णोक० । णवरि अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अरदि-सोग० अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० छम्मासं । एवं पुरिसवेद० । णवरि अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० वेसमया। सम्मामि० उक्क० अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० एक्कत्तीसं सागरो० देसूणाणि । इथिवेद० उक्क० जह० एगस०, उक्क० पणवण्णपलिदो० देसूणाणि । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० वेसमया । एवं भवणादि जाव णवगेवजा त्ति । णवरि सगट्टिदी देसूणा । अरदि-सोग० हस्स-रदिभंगो । अन्तर्मुहूर्त है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है। सोलह कषाय और छह नोकषायोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। $ २०२. मनुष्यत्रिकमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि प्रत्याख्यानचतुष्कके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका भंग ओघके समान है । मनुष्यिनियोंमें स्त्रीवेदके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। $२०३. देवोंमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक अठारह सागरोपम है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम इकतीस सागरोपम है। इसी प्रकार बारह कषाय और छह नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । तथा अरति और शोकके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है। इसी प्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है। सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम इकतीस सागरोपम है। स्त्रीवेदके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम पचवन पल्योपम है। अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है। इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर नौ ग्रेवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए। अरति और शोकका भंग हास्य और रतिके समान है । सहस्रारकल्पमें अरति और शोकका भंग सामान्य देवोंके समान है। इतनी
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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