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________________ ८६ [ वेदा * उकस्से सारि समया । १८६. तं जहा -- उवसमसम्माइद्विणो पमतसंजदा संजदासंजदा असं सम्माइट्टिणो च जहाकमं चचारि पंच छ पयडीओ उदीरेमाणा द्विदा । पुणो के उसमसम्म कालो एक्समयमेचो अस्थि ति सासणगुणं पडिवण्णेसु एको भुजगा समय लो। से काले मिच्छतं पडिवलेसु विदिओ भुजगारसमओ लम्भदे । है काले भये पवेसिदे तदियो जगारसमयो । तदणंवरसमय दुगुछाए पवेसिदाह उत्थो भुजगारसमयो त्ति एवमुकस्सेण चत्तारि समया अजगारपवेसगस्स ला भवति । अथवा श्रदरमाखगो अणिविसामो अण्णदर संजलरण मुदीरे मायो पुरिसवेदोकड्डिय एयसमयं भुजगारपवेसगो जादो । तदतरसमए कालं कादृण देवेसुध्वण्णपदमपमए विदियो भुजगारसमयो । पुणो तो अतरसमए भयमुदीरेमाणस्स तदियो भुजगारसमयो से काले दुगु छोदएण परिणदस्त उत्थ समयो चि एवं चचारि समया । भुजगार जयभवलासहिते कसायपाहुडे * अप्पदरपवेसगो केवश्चिरं कालादो होदि ? $ १८७. सुगममेदं पुच्छायार्गदर्शक * जगणेण एयसमओ । : आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज १८. कुदो ? एयसमयमप्ययरं काढूण तदणंतरसमए भुजगारमबट्टिदं वा दस्तदुवलंभादो | * उत्कृष्ट काल चार समय है । १८६. यथा - उपशमसम्यग्दृष्टि प्रमत्तसंगत, संयतासंयत और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव क्रमसे चार, पांच और छह प्रकृतियोंकी उदीरणा करते हुए स्थित हैं। पुनः उपशम सम्यक्त्वका काल एक समयमात्र शेष है कि उनके सासादन गुणस्थानको प्राप्त होनेपर एक भुजगारसमय प्राप्त हुआ। तदनन्तर समय में मिध्यात्वको प्राप्त होनेपर दूसरा भुजगार समय प्राप्त होता है । तदनन्तर समय में भय के प्रवेश कराने पर तीसरा भुजगार समय प्राप्त होता है, और तदनन्तर समय में जुगुप्सा के प्रवेश कराने पर चौथा भुजगार समय प्राप्त होता है। इस प्रकार भुजगारप्रवेशक के उत्कृष्टरूपसे चार समय प्राप्त होने हैं। अथवा उतरनेवाला तथा अन्यतर संञ्चालनकी उदीरणा करनेवाला अन्यतर अनिवृत्तिउपशामक जीव पुरुषवेदका अपकर्षण करके एक समय तक भुजगार प्रवेशक हो गया। पुनः तदनन्तर समय में मरकर देवों में उत्पन्न होने के प्रथम समय में दूसरा भुजगारसमय प्राप्त हुआ। पुनः उसके बाद अनन्तर समय में भयकी उदीरणा करनेवाले उसके तीसरा भुजगारसमय प्राप्त हुआ। तथा तदनन्तर समयमें जुगुप्साके उदयसे परिणत हुए उसके चौथा भुजगारसमय प्राप्त हुआ। इस प्रकार भुजगारप्रवेशकके चार समय प्राप्त हुए । * अल्पतर प्रवेशकका कितना काल है ? $ १८७, यह प्रच्छावाक्य सुगम है । * जघन्य काल एक समय हैं । ----- ९८८. क्योंकि एक समय तक अल्पतरपद करके तदनन्सर समयमें भुजगार या अवस्थित पदको प्राप्त हुए जीवके उक्त काल उपलब्ध होता हैं ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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