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________________ chod.... .. as ht... n .. . .. " जयधवलाशिकसायपाइचार्य श्री सुविद्यासागर दोषों ६ १७३. कुदो ? भय-दुगुंडाणमएणदरोदयविरहिदकालम्मि दोण्हमुदयकाला संखेजगुणम्मि संचिदत्तादो। अट्ठएहं पयडीणं पसगा संस्खेजगुणा । १ १७४. कुदो ? अण्णदरविरहिदकालादो संखेञगुणम्मि दोहं विरहिदकालम्मि संचिदत्तादो। एवं पिरोघो समत्तो । एवं सब्बणेरइय-देवा भवणादि जान सहस्सारा त्ति । तिरिक्खेसु सम्बत्थोवा पंच. उदीर० । छ. उदीर० असंखे०गुणा । सत्त० उदीर असंखे गुणा । दस० उदीर० अणंतगुणा । णव उदीर० संखे गुणा अट्ठ. उदीर० संखे गुणा। एवं पंचि तिरिक्खितिए । णवरि दस० उदी० असंखे०गुणा । पंचिंतिरि०अप०-मणुसअप० सम्बत्थो० दस० उदी० । णव० उदी० संखेज गु० | अट्ट० उदी० संखे०गु० । मणुसेसु सव्यस्थोवा एक्किसे उदी० । दोएडमुदी० संखेजगुणा । चदुण्हं संखे गुणा । पंचण्हं संखे.गुणा । छ० उदी० संखे० । गुणा । सत्त० उदी० संखे गुणा । दस० उदी० असंखे०गुणा । णव० उदी० । संखे० गुणा । अट्ठ० उदी० संखेगुणा । एवं मणुसपज मणुसिणी । सवार संखे गुणं कायच्वं । आणदादि जाव वगेवजा त्ति सव्वत्थो० दस० उदीर० | छ० उदी० संखे २४३. क्योंकि दोनोंके उदयकालसे संख्यातगुणे भय और जुगुप्सामें से किसी एकके उदयसे रहित कालमें उक्त जीवोंका सम्चय हुआ है। * उनसे आठ प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव संख्यातगुणे हैं । . १७४. क्योंकि अन्यतरके उदयसे रहित कालसे दोनों के उदयसे रहित संख्यातगुणे कालमें उक्त जीवोंका सञ्चय हुआ है। इसप्रकार सामान्यसे नारकियों में अल्पबहुत्व समाप्त हुश्रा । इसीप्रकार सब नारकी, सामान्य देव और भवनवासियांसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें जानना । चाहिए। नियच्चोंमें पाँच प्रकृतियोंके उदीरक जीव सबसे स्तोक है। उनसे छह प्रकृतियोंके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे सात प्रकृतियोंके उदीरक जीव असंख्यातगुरणे हैं। उनसे दस प्रकृतियोंके उदीरक जीव अनन्तगुणे है । उनसे नौ प्रकृतियोंके उदीरक जीप संख्यातगुणे हैं। उनसे आठ प्रकृतियोंके उदीरक जीव संख्यातगुग्गे हैं। इसीप्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें दस प्रकृतियोंके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें दस प्रकृतियोंके उदीरक जीत्र सबसे स्तोक है। उनसे नौ प्रकृतियोंके उदीरक जीय संख्यातगुणे हैं। उनसे आठ प्रकृतियोंके उदीरक जीव संख्यातगुरणे हैं । मनुष्योंमें एक प्रकृतिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उसे दो प्रकृतियोंके उदोरक जीव संख्यतागुण है। उनसे चार प्रकृतियोंके उद्दीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे पाँच प्रकृतियोंके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे छह प्रकृतियोंके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे सात प्रकृतियोंके लदोरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे इस प्रकृतियोंके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे नौ प्रकृतियोंके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे आठ प्रकृतियोंके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियों में जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणेके स्थानमें संख्यातगुणा करना चाहिए । श्रानत कल्पसे लेकर नौ |वेयक तकके देवों में इस प्रकृतियोंके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे छह
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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