SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरपषिदीरणाए [रिणयोगदार परूवणा 就 ६१२२. सुगममेदं पुच्छासुतं । जपणेअंतोमुत्तं । ६१२३. कुदो ? दस एहमुदीरगस्स भयचोच्छेदेण सध्वजहणमंतो मृदुत्तमणसिदपदेणंतरिदस्स तदुबलं भादो । * उकस्से छावट्टिसागरोवमाथि सादिरेयाणि । ६१२४. तं जहा -- एको मिच्छाहडी दसहं पवेसगोविदपदेतो मुहुतसंतरिय तदो सम्मतं घेण बेछाबडिसागरोमाणि परिभमिय पुणो मिच्छतं गंतणंतोमुरोण दसरहं पवेसगो जादो । तस्स लद्धमंतरं होई । एवमोघेण सब्धेसिमुदीरणाडाणाणमंतर परूवणा कया । ६१२५. संपछि यादेसपरूवणमुच्चारणाणुगममेत्थ तस्साम । तं जहा— अंतरापुगमेण दुविहो गिद्देसो - श्रघेण आहेसेस य । ओषेण दस एहमुदीर० जह० 'मोर्गदर्शक आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज अंतो४०, उक्क० बेला डिसागरोत्रमाथि देणाणि । एव० अ० जह० एयसमै श्री, उक्ऋ० पुण्यकोडी देणा । सत-पंच० जह० एयसमओ, उक० उचढपोग्गलपरियहं । चदुरा दोहमे किस्से उदीर० जह० अंतोमु०, उक्क० उपोग्गलपरिय | । ६१२६. देसेण रहय० दस० हं जह० अंतोतं मत्त० जह० $ १२२. यह प्रच्छास्थ् सुगम है * जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । १९३. क्योंकि जो दस प्रकृतियों का उदीरक जीव मय की व्युच्छित्ति के साथ सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त कालतक अर्पित पदके द्वारा उसका अन्तर करता है उसके उक्त पदका उक्त अन्तरकाल उपलब्ध होता है * उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो छयासठ सागरप्रमाण हैं | १२४. यथा -- किसी एक दस प्रकृतियोंके प्रवेशक मिध्यादृष्टि जीवने अर्पित पदके द्वारा अन्तर्मुहूर्त फालत उसका अन्तर किया। फिर सम्यक्त्वको ग्रहण कर और दो छयासठ सागर कालतक गरिभ्रमणकर पुनः मिध्यात्वमें जाकर अन्तर्मुहूर्त में जो दस प्रकृतियों का प्रवेशक हो गया उसके उक्त कालप्रमाण उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त होता है। इसप्रकार से सब उदीरणास्थानोंके अन्तरकी प्ररूपणा की। ६ १२५. अब आदेशका कथन करनेके लिए यहाँ पर उच्चारणाका अनुगम करके बतलाते हैं । यथा - अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रोव और आदेश । श्रघसे दस प्रकृतियों के उदीरकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है, और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो पासठ सागर है। नौ और आठ प्रकृतियों के प्रवेशकका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है । सात, छह और पाँच प्रकृतियोंके उदीरकका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर उपार्थपुलपरिवर्तनप्रमाण है । चार, दो और एक प्रकृतिके उदीरकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर उपार्धपुलपरिवर्तनप्रमाण है । ३ १२६ आदेश नारकियों में दस और छह प्रकृतियोंके उदीरकका जघन्य अन्तर
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy