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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो * जहणेणाधिसमोभाचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ६११५. पंचएहं पवेसगस्स ताव बुचदे । तं जहा--खइयसम्माइट्ठी उचसमसम्माइट्टी वा संजदो भएण सह पंच उदीरेमाणो विदो, तस्स भयकालो एगसमओ अस्थि त्ति दुगुंछाए पवेसगो जादो । तत्थ छएहमुदीरणहाणेयेक समयमंतरिय विदियसमए भयवोच्छेदेण पुणो वि पंचएहं पवेसगो जादो । लद्धमंतरं जहण्णदो एयसमयमेत्तं । अधवा एसो वेव पंचमे पवेसगो संजदो भयवोच्छेदेणेगसमयं चउण्हं पवेसगो होदूर्णतरिय पुणो विदियसमए दुगुंछापवेसेण पंचएह पवेसगो जादो । लद्धमेगसमयमेत्तं जहणंतरं । ११६. संपहि कण्हं यचे. बुचदे-लएहमुदीरगो होदूण द्विवेदगसम्माइट्ठी संजदरस भयवोच्छेदेणेगसमयमंतरिदस्म पुणो वि से काले दुगुंछोदएण परिणदस्स लद्धमंतरं होइ । अधवा तस्सेव छप्पवेसगस्स भयकालो एगसमयो अस्थि ति दुगंछागमेणंतरिदस्स से काले भयवोच्छेदेण लद्धमंतरं कायव्वं । उपसम-खइयसम्माइद्विसंजदासंजदस्स वि एवं चेत्र दोहि पयारेहि जहण्णंतरमेदं वत्तव्यं । ६ ११७. संपहि सनण्हं पवेसग० उच्चदे---वेदगसम्माइविसंजदासजदस्स ताव * जघन्य अन्तर एक समय है। 5 '१५. सर्वप्रथम पाँच प्रकृतियोंके प्रवेशकका अन्तरकाल कहते हैं। यथा-सायिकसम्यग्दृष्टि या उपशमसम्यग्दृष्टि जो संयत जीव भयके साथ पाँच प्रकृतियोंकी उदीरणा करता हुआ स्थित है उसके भयकी उदीरणाका एक समय काल शेष रहा कि वह जुगुप्साका प्रवेशक हो गया। वहाँ छह प्रकृतिक उदीरणास्थानके द्वारा एक समय तक उसका अन्तर करके दूसरे समयमें भयकी उदयव्युच्छित्तिके द्वारा फिरसे पाँच प्रकृतियों का प्रवेशक हो गया। इस प्रकार पाँच प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य अन्तर एक समयमात्र प्राप्त हो गया। अथवा यही पाँच प्रकृतियों का प्रवेशक संयत जीव भयकी उदयव्युच्छित्तिद्वारा एक समय तक चार प्रकृतियोंका प्रवेशक होकर उस द्वारा उसका अन्तर करके पुनः दूसरे समय जुगुप्साके प्रवेशद्वारा पाँच प्रकृतियोका प्रवेशक हो गया। इस प्रकार पाँच प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य अन्तर एक समय प्राप्त हो गया। ६ ११६. अब छह प्रकृतियोंके प्रवेशकका अन्तरकाल कहते हैं-छह प्रकृतियों की उदारणा करनेवाले जिस वेदकसम्यग्दृष्टि संयत जीवने भयकी न्युजिन्छत्ति कर एक समयके लिए उसका अन्तर किया, उसके फिरसे तदनन्तर समयमें जुगुप्साके जदयसे परिणत होनेपर छह प्रकृतियों के प्रवेशकका एक समय जघन्य अन्तर प्राप्त होता है । अथवा छह प्रकृतियों के प्रवेशक उसी जीवके भयका एक समय काल शेष है, कि उस जीयने जुगुप्साके प्रवेशद्वारा उसका अन्तर किया तथा तदनन्तर समयमें भयकी उदयव्युचित्ति द्वारा वह पुनः छह प्रकृतियों का प्रवेशक हो गया। इस प्रकार भी इसका एक समय जघन्य अन्तर प्राप्त करना चाहिए । उपशमसम्यग्दृष्टि या क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीवके भी इसीप्रकार दो प्रकारसे इस पदका यह जघन्य अन्तर कहना चाहिए। ६ ११७, अब सात प्रकृतियोंके प्रवेशकका अन्तरकाल कहते हैं--वेदकसम्यग्दृष्टि संयता
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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