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________________ जयधवलास हिदे कसाय पाहुडे सप्त हं [ वेदगो ७ हं च पवेसगस्स उकस्सकालागुगमो कायव्वो, भय-दुर्गुछारमुदय कालं मोरा एस एस स्कॉलर्स विनिक्षितगरी महाराज Fruer | एवं चैवं वहं दसहं पि उक्कस्स कालो अगंतव्यो । पारि भय - दुगुदाणमएणदरस्सारणुदयकालो णवण्हं कायव्वो । दोन्हं पि उदयकालो दस एहमगंतच्चो ति । एवमोवेण कालागमो समत्तो । आदेसेण मसतिए श्रोधभंगो सेससव्वाईस अप्पप्पणी पदासं जह० एयसमओ, उक्क० अंतो० । एवं जाव ० । 1 * एगजीवेण अंतरं । ११०. एतो एगजीव चिसयमंतरं वत्तइस्सामो ति श्रहियारपरामरसवकमेदं । * एकिस्से दोहं च परं पयड़ीणं पवेसगंतरं केवचिरं कालादो होदि १११. सुगमं * जहणणेण अंतोमुहुत्तं । ६ ११२. तं जहा - एकिस्से ताव उच्चदे - सुहुमसांपराइयों एकिस्से पवेसगो लोहसंजल पढमडिदीए अवलियपविङ्काए अपवेसगो होदूांतरिदो तदो उवसंतद्धं बोलाविय परिषदमाण सुमसांपराइयपढमसमए एकिस्से पवेसगो जादो । लद्धमेकिस्से पवेसगस्स जहरणंतरमंतोमुहुत्तमेतं । एवं दोन्हं पवेसगस्स वि वत्तव्यं । सात और आठ प्रकृतियोंके प्रवेशक के उत्कृष्ट कालका अनुगम करना चाहिए, क्योंकि भय और जुगुप्सा उदयकालको छोड़कर अन्यके इनका उत्कृष्ट काल नहीं उपलब्ध होता । तथा इसीप्रकार नौ और दस प्रकृतियोंके प्रवेशकका उत्कृष्ट काल जान लेना चाहिए। किन्तु इतनी विशेपता है कि भय और जुगुप्सामेंसे श्रन्यतरका जो अनुदयकाल है वह नौ प्रकृतियोंके प्रवेशकका उत्कृष्ट काल करना चाहिए और दोनों प्रकृतियोंका जो उदय काल है वह दस प्रकृतियों के प्रवेशुकका जानना चाहिए । इसप्रकार ओघसे कालानुगम समाप्त हुआ । आदेश से मनुष्यत्रिक में ओके सामान भंग है। शेष सब मार्गणाओं में अपने-अपने पदोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । * एक जीवकी अपेक्षा अन्तर | $ ११०. आगे एक जीव विषयक अन्तरको बतलाते हैं । इसप्रकार अधिकारका परामर्श करनेवाला यह वचन है 1 * एक, दो और चार प्रकृतियोंके प्रवेशकका अन्तरकाल कितना है ? $ १११. यह सूत्र सुगम है । * जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । $ ११२ यथा - सर्वप्रथम एक प्रकृतिका अन्तर कहते हैं - एक प्रकृतिका प्रवेशक एक सूक्ष्मसाम्परायिक जीव लोभसंज्वलनकी प्रथम स्थितिके उदद्यावलिमें प्रविष्ट होने पर उसका वेशक होकर अन्तर किया। उसके बाद उपशान्तकपाय गुणस्थानके कालको विता कर गिरते समय वह पुनः सूक्ष्मसाम्पराय के प्रथम समय में एक प्रकृतिका प्रवेशक हो गया। इसप्रकार एक प्रकृतिके प्रवेशकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त प्राप्त हो गया। इसीप्रकार दो प्रकृतियों के
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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