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२८ प्रकृतिक प्रवेशस्थान से लेकर १ प्रकृतिक प्रवेशस्थान तक कुल प्रशस्थानों की संख्या २० है । मध्यके १८, १७, १६, १५ और १४ प्रकृतिक ५ प्रवेशस्थान, ११ प्रकृतिक १ प्रवेशस्थान प्रकृतिक १ प्रवेशस्थान तथा ५ प्रकृतिक १ प्रवेशस्थान कुल प्रवेशस्थान नहीं हैं। इनमें से कौन प्रवेशस्थान किस प्रकार घटित होता है और प्रत्येक प्रवेशस्थानमें किन प्रकृतियोंका ग्रहण हुआ है इसका अधिकारी भेदके कथनपूर्वक सांगोपांग विचार किया गया है। आगे इसी क्रमसे शेष अनुयोगद्वारों तथा भुजगार आदिका विचार कर यह अधिकार समाप्त होता है । मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसांगर जी महाराज
प्रकृति उदय
यह तो हम पहले ही सूचित कर आये हैं कि वेदक अनुयोगद्वारको प्रथम गाथा के उत्तरार्धद्वारा सारण प्रकृति उदयकी सूचना की गई है, इसलिए प्रकृतिप्रवेश अधिकारको प्ररूपणा के बाद प्रकृति उदय अधिकारका कथन अवसर प्राप्त है, क्योंकि मोहनीय कर्मका उदय चार प्रकारका है— प्रकृति उदय स्थिति उदय, अनुभाग उदय और प्रदेश उदय | अतएव प्रकरणानुसार यहाँ सर्वप्रथम प्रकृति उदयका कथन करना चाहिए, किन्तु उदीरणासे ही उदयका ग्रहण हो जाता है, क्योंकि किंचित् विशेषता को छोड़कर उदीरणासे उदय सर्वथा भिन्न नहीं है। इसलिए यहाँ उदयका नुत्रकारने अलगसे
स्थान नहीं किया है ।
स्थिति उदीरणा
अब वेदक अनुयोगद्वारकी दूसरी गाथाके प्रथम पादद्वारा सूचित स्थितिउदीरणाका कथन अवसर प्राप्त है। स्थितिउदीरणा दो प्रकारकी है— मूल प्रकृति स्थितिउदीरणा और उत्तर प्रकृति स्थिति उदीरणः । प्रमाणानुगम आदि कुल अनुयोगद्वार २४ हैं । उनमें से मूल प्रकृति स्थितिउदीरणा का सन्निकर्ष के सिवाय २३ अनुयोगद्वारोंके द्वारा और उत्तर प्रकृति स्थितिउदीरणाका सन्निकर्ष सहित २४ अनुयोगद्वारोंके द्वारा कथन हुआ है। इसके शिवाय भुजगार, पदनिक्षेप वृद्धि और स्थान ये चार अधिकार और हैं। इन द्वारा भी दोनों प्रकारकी स्थितिउदीरणाओंका विचार किया गया है । वने विचारके बाद अन्त में संक्षेप स्थानको प्ररूपणा करके स्थितिउदीरणाका प्रकरण समाप्त किया गया है ।