SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मा०हर ] उत्तरपथहिडदोर।।ए अणियोगशरपरूवणा * सिया पुरिस० माणसं० च पवे० । सिया पुरिस० मायासंज० च पवे० । सिया पुरिस० लोहसंज० च पये० । एवं पुरिसवेदे चत्तारि भंगा। एवमित्थि णबुंसयवेदेहिं मि पादेकं चत्तारि भंगा उच्चारिय घेत्तव्वा । तदो दोन्हं पयडीएणं पवेसगाणं बारस भंगा चि सिद्धं १२ । * चहं पयडीणं पवेसगस्स चवीसं भंगा । I ६ ८४. किं कारणं ९ इस्सर दि-श्वर दिसोगसण्णिदाणं दोएहं जुगलाणं तिणिवेदचदुसंजलखेहि सह संजोगे कीरमाणे तत्तियमेत भंगाणमुप्पत्तिदंसणा दो । तं जहासिया इस्सरी पुरिसवेद - कोहसंजलणे च पवेसेदि । सिया इस्स- रदीओ पुरिसमाणसंज० पवे० । सिया हस्स- रदीओ पुरिस० - मायासंज० पवे० । सिया इस्स-रदीओ पुरिस० - लोहसंज० पवे० । एवं हस्स रदीगं पुरिसवेदेण सह चदुसु संजलणेसु संचारिदाणि चत्तारि मंगा । एवमित्थि० णवंस० वेदेहिं मि पादेकं चउण्हं भंगारणमुच्चारणा कायव्वा । तदी इस रदी वारस भंगा। अरदि-सोगाणं पि एवमेव बारस भंगा १२ समुप्पजंति मार्गदर्शक. आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज चिन्हं पवेसगस्स उबीस भंगारामुप्पत्ती सिद्धी २४ । * पंचराहं पयडी पवेसगस्स चत्तारि चडवोर्स भंगगा । ८५ तं जहा -- इस्सरदि-अरदिसोगाणं दोएडं जुगलाणं चउरद्दं संजलग्गाणं है । कदाचित् पुरुषवेद और मानसंज्वलनको प्रवेशित करता है। कदाचित पुरुषवेद और मायासंज्वलनको प्रवेशित करता है तथा कदाचित् पुरुषवेद और लोभसंज्वलनको प्रवेशित करता । इसप्रकार पुरुषवेदके साथ चार भंग प्राप्त होते हैं । इसीप्रकार स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके साथ भी प्रत्येक के चार भंगों का उच्चारण कर ग्रहण करना चाहिए । इसलिए दो प्रकृतियोंके प्रवेशकों बारह १२ भंग होते हैं यह सिद्ध हुआ | * चार प्रकृतियोंके प्रवेशकके चौबीस भंग होते हैं । ६८४, क्योंकि हास्य- रति और अरति शोक इस संज्ञावाले दो युगलोंके तीन वेद और संज्वलन के साथ संयोग करने पर उतने भंगों की उत्पत्ति देखी जाती है । यथा— कदाचित् हास्य- रति, पुरुपवेद और क्रोधसंज्वलनको प्रवेशित करता है । कदाचित् हास्य-रति पुरुषवेद और मानसंज्वलनको प्रवेशित करता है । कदाचित् हास्य- रति, पुरुषवेद और मायासंज्वलनको प्रवेशित करता है तथा कदाचित् हास्य- रति, पुरुषवेद और लोभसंज्वलनको प्रवेशित करता है । इस प्रकार हास्य और रतिका पुरुषवेदके साथ चार संज्चलनोंमें संचार करने पर चार भंग होते हैं। इसीप्रकार स्त्रीवेद और नपुंसक वेदके आश्रयसे भी प्रत्येक के चार भंगोंकी उच्चारणा करनी चाहिए | इसलिए हास्य रतिकी अपेक्षा बारह भंग होते हैं । तथा इसीप्रकार अरति शोककी अपेक्षा बारह १२ भंग उत्पन्न होते हैं । इसप्रकार चार प्रकृतियोंके प्रवेशक जीवके चौबीस २४ गोकी उत्पत्ति सिद्ध हुई । * पाँच प्रकृतियोंके प्रवेशक जीवके चार चौबीस भंग होते हैं । ८४. यथा -हास्य रति और अरति शोक इन दो युगलोंका, चार संज्वलनोंका, तीन
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy