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मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[वेदगो भागा। अणुदीर० संखे०भागो। बारसक०-इस्स-रह-भय-दुगुंछ. उदीर० संखेजदिभागो। अणुदी० संखेजा भागा। एवं सत्रणेरइय० । तिरिक्खाणमोघं । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिय३ । णवरि मिच्छ०-णवूस. उदीर० असंखेजा भागा । अणुदी. असंखे०भागो। इथिवे-पुरिस० उदीर. असंखे०भागो । अणुदी० असंखे० भागा । णयरि पञ्ज० इत्थिवेदो गत्थि । णस० उदीर० संखेजा भागा । अणुदी० संखे०भागो। पुरिसवे. उदीर० संखे भागो। अणुदी० संखेजा भागा। जोणिणी० पुरिस-णस. णस्थि । इस्थिवेद० णस्थि भागाभागो। पंचिदियतिरिक्खअपज०मणुसअपञ्ज. मिच्छ०-णवुस० णस्थि भागाभागो। सोलसक०-छएणोक० पंचिं०तिरिक्खभंगो। मणुसाणं पंचिंदियतिरिक्खभंगो । णवरि सम्म० उदीर० असंखे०. भागो । अणुदी० असंखेजा मागा । एवं पञ्जत्त । णवरि संखेल्नं कायध्वं । इथिवे. णत्थि । एवं मणुसिणी० । णवरि पुरिस०-णवूस णस्थि । इत्थिवे. उदीरगा संखेजा भागा । अणुदी० संखे०भागो।
५९. देवेसु मिच्छ० सम्म० सम्मामि० णिरयोघं । चउएहं लोभ० इथिवे.. हस्स-रदि० उदीर० संखेज्जा भागा । अणुदी० संखे०मागो। बारसक० अरदि-सोग
और अनुवीरक जीव संख्यातवे भागप्रमाण है। बारह कषाय, हास्य, रति, भय और जुगुप्साके जुदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण है और अनुदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इसीप्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए। तिर्यञ्चोंमें ओघके समान भंग हैं। इसीप्रकार पश्चेन्द्रियतियञ्चत्रिकर्म जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और नपुसकवेदके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं और अनुदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण है और अनुदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। किन्तु इसनी विशेषता है कि तिर्यञ्च पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेदके उदीरक जीव नहीं हैं। तथा नपुसकवेदके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं और अनुदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। पुरुषवेदक उदीरक जीव संख्यात भागप्रमाण हैं और अनुदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । योनिनी तियश्लोंमें पुरुषवेद और नपुसकवेदके उदीरक जीव नहीं हैं। तथा इनमें स्त्रीवेदको अपेक्षा भागाभाग नहीं है। पञ्छेन्द्रियतिर्यञ्च अपयाप्त और मनुष्य अपयात कोंमें मिथ्यात्व और नपुंसकवेदकी अपेक्षा भागाभाग नहीं है। सोलह कषाय और बह नोकषायोंके उदीरक जीवोंका भंग पञ्चेन्द्रियतिर्योंके समान है। मनुष्याम पञ्चेन्द्रिय तियञ्चोंके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके उदीरक जीव असंख्यात भागप्रमाण हैं और अनुदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इसीप्रकार मनुष्य पर्याप्तकोंमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातके स्थान में संख्यात करना चाहिए। इनमें स्त्रीवेदके उदीरक नहीं होते। इसीप्रकार मनुष्यनियों में जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें पुरुपवेद और नपुसकवेदके उदीरक नहीं होते। तथा स्त्रीवेदके उदीरक संख्यात बहुभागप्रमाण है और अनुदीरक जीव संख्यातवे भागप्रमाण हैं।
६५६. देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग नारकियोंके समान है। __ . चार लोभ, स्त्रीयेद, हास्य और रतिके जदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं और अनुदीरक