SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० ६२ ] उत्तरपडिउदीरणाए अगियोग हार परूवरणा ३१ Q तिन्हं कसाया । अपच क्खाएकोधमुदीरेंतो मिच्छ० सम्म० सम्मामि० प्रांतागु० को० णोक० सिया उदीर० | दोन्हं कोधारणं णर्वस० निय० उदीर० । एवमेकारसक० | इस्समुदीरेंतो० मिच्द्र० सम्म० सम्मामि० सोल सक० मय- दुगुंद० सिया उदीर० । स०-रदि० गिय० उदीर० । एवं रदीए। एवमरदि-सोग० । भयमुदी - तो ० दंसणतिय - सोलसक० - इस्स-रदि भरदि-सोग० - दुर्गुबा० सिया उदीर० । णर्चुस ० निय० उदीर० । एवं दुगु द्वा० । एवं सत्तसु पुढवी | १५१. तिरिक्खेसु दंसगतिय-प्रांतासु०४- अपच्च क्खाणचउक्क० णव णोकसाय दोष । पाखनको मुदती मिसम्म सम्मामि० श्रता ०४ - श्रपञ्च क्खाएकोध० णत्रणोक० सिया उदीर० । कोहसंज० पिय० उदीर० । एवं सत्तकसा० । एवं पंचिदियतिरिक्ख ३ । णवरि पंचिदियतिरिक्खपत्तरसु इत्थिवेदो गत्थि । जोखिणी० पुरिस० स० णत्थि । इत्थवे० धुवं कायध्वं । ८ ♡ ५२. पंचिदियतिरिक्ख अपअ ० -मगुस अपज० मिच्छत मुदीरें• सोलसक०उष्णोक० सिया उदीर | शास० खियमा उदीर० । एवं बुंस० । अता- ० आदि तीन कपायोंकी मुख्यतासे जानना चाहिए। अप्रत्याख्यानावरण कोधकी उदीरणा करनेवाला जीव मिध्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व, अनन्तानुबन्धी क्रोध और छह नोकपायका कदाचित् उदीरक होता है । प्रत्याख्यानावरण क्रोध और संज्वलन क्रोध इन दो क्रोधोका नियमसे उदीरक होता है । इसीप्रकार अप्रत्याख्यानावरण मान आदि ग्यारह कषायोंकी मुख्यतासे जानना चाहिए। हास्यकी उदीरण करनेवाला जीव मिध्याक्त्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है। नपु ंसक वेद और रतिका नियमसे उदीरक होता है । इसीप्रकार रविको मुख्यतासे सत्रिकर्षं जानना चाहिए। तथा इसीप्रकार अरति और शोककी मुख्यतासे भी सन्निकर्ष जानना चाहिए | भयकी उदीरण करनेवाला जीव तीन दर्शनमोहनीय, सोलह कषाय, हास्य, रति, अरति शोक और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है । नपुंसक वेदका नियमसे उदोरक होता है। इसीप्रकार जुगुप्साकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । इसीप्रकार सातों पृथिवियों में सन्निकर्ष जानना चाहिए। ५१. तिर्यश्वा दर्शनमोहनीय तीन, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, अपव्याख्यावरण चतुष्क और नौ नोकषायका भंग श्रोधके समान है । प्रत्याख्यानावरण कोधकी उदीरणा करनेवाला जीव मिध्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व अनन्तानुबन्धीचतुष्क, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध और नौ नोकषायका कदाचित् उदीरक होता है। क्रोधसंज्वलनका नियमसे उदीरक होता है 1 इसीप्रकार प्रत्याख्यानावरण मान आदि सात कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्षं जानना चाहिए | इसीप्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक में जानना चाहिए। किंतु इतनी विशेषता है कि पचेन्द्रिय 1 तिर्यश्व पर्याप्तकों में स्त्रीवेदी उदीरणा नहीं होती । तथा योनिनी तिर्योंमें पुरुषवेद और स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं होती । योनिनी तिर्यों में स्त्रीवेदकी उदीरणाको ध्रुव करना चाहिए । ४२. पन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिध्यात्वकी उदीरणा करनेवाला जीव सोलह कषाय और छद्द नोकपायका कदाचित् उदीरक होता है । नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक होता है। इसीप्रकार नपुंसकवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy