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________________ गाय ६२] उत्तरपयडिउदीरणाए अणियोगहारपरूवणा ____ २९ पच्चक्खाण०४ अपञ्चक्खाणभंगो । मणुसिणी० इथिवे. जह० उक्त • अंतोमुहुत्तं । ४८. देवेसु मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-अणंताणु०४ जह• अंतोमु०, उक्त एकत्तीसं सागरोवमाणि देसूरणाणि । बारसक०-हस्स-रदि-भय-दुगुंछ० जह० उक्क० अंतोमु० ! अरदि-सोग० जह० अंतोमु०, उक्क० लम्मासा । इत्थिवे०-परिस० स्थि अंतरं । भवणादि जाव णबगेवजा ति एवं चेव । वरि सगहिदी देमूणा । अरदिसोग० जह० उक० अंतोमु । सदर-सहस्सार. अरदि-सोग० देवोघं । सणक्कुमारादि जाव णवमेवजा ति इस्थिवेदो णस्थि । अणुद्दिसादि जाव सबट्ठा ति सम्म०-पुरिस. पत्थि अंतरं । बारसक०-छएणोक० जह, उक० अंतोमुहुर्त । एवं० जाव० । ४९. सएिणयासाणु० दुविहो णि.-ओघे० प्रादेसे० । ओघेण मिच्छत्तमुदीरतो सोलसक०-णवणोक० सिया उदीर० सिया अणुदीर० । सम्मत्त मुदीरतो वारसक०-णवणोक० सो उदीर असर्या अणुरिष्टालाएवं सम्मामिट । अणंताणु.. कोधमुदीरतो तिण्हं कोधाणं णिय० उदीर० । मिच्छ०-णवणोक० सिया उदीर० । एवं तिएहं कसायाणं । अपचक्खाणकोहमुदीरेंतो दोण्हं कोहाणं णिय. उदीर० । पझेन्द्रियतियश्चत्रिकके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका भंग अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके समान है। तथा मनुज्यिनिया स्त्रीवेदके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। ६४८. देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उदीरकका जघन्य अन्तर अन्तमुहूतं है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम इकतीस सागर है। यारह कषाय, हास्य, रति, भय और जुगुप्साके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अरति और शोकके उदीरकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उदीरकका अन्तरकाल नहीं है। भवनवासियोंसे लेकर नौ अवेयक तक के देवा में इसीप्रकार जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी स्थिति कहनी चाहिए । तथा इनमें अरति और शोकके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । शतार और सहलारमें अरति और शोकके उदीरकका अन्तरकाल सामान्य देवोंके समान है। सनत्कुमारसे लेकर नौ प्रेवेयक तक्रके देवों में स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है। मनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्व और पुरुषवेदके उदीरकका अन्तरकाल नहीं हैं। बारह कपाय और छह नोकषायोंके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर 'अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । ६४. सन्निकर्षानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- श्रोष और आदेश । प्रोधसे मिथ्यात्वकी उदीरणा करनेवाला जीव सोलह, कषाय और नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक होता है और कदाचिन अनुदीरक होता है। सम्प्रक्त्वकी उदीरणा करनेवाला जीव बारह कषाय और नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक होता है और कदाचित् अनुदीरक होता है। इसीप्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी मुख्यत्तासे जान लेना चाहिए। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी उदीरणा करनेवाला जीव तीन क्रोधोंका नियमसे उदीरक होता है। मिथ्यात्व और नौ नोकषायोंका कदाचित उदीरक हाता है। इसीप्रकार तीन अनन्तानुबन्धी कषायोंकी मुख्यतासे जान लेना चाहिए । अप्रत्याखयानावरण क्रोधकी उदीरणा करनेवाला जीव दो क्रोधोंका नियमसे उदीरक होता है । अनन्ता
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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