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________________ शुद्धि-पत्र अशुद्धि शुद्धि पृष्ठ पं. जानना चाहिए / प्रथम नरतामें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेगता है कि इनमें अपना-अपना स्पर्शन बाहना चाहिए / प्रथम नरक में अनुदीरक होते हैं। पञ्चेन्द्रिय अनुदारक होते हैं। योनिनी तिर्योंमें स्त्रीवेदयी अनुदीरणा नहीं है। पञ्चेन्द्रिय पलिदोवमगि पुच्चकोहियुवतमहियाणि ? पुवकोजिYधत्तं ? मन्मुख क्षायिक गम्पग्दष्टि मामुमकिक मलार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज रहता है। गम्भव है। दो क्रोधोंका नियमसे दो प्रोपोंका तथा नपरवेदका नियम स्त्रोवेदकी नगंगक्रयेदस्ती सिया / उदीर खिया उदीर. भीतर दो बार भीतर मंथमागबमम नाथ को चार 16 सूचना महापर हमने प्रकृत गागके कुछ उपयुक्त संशोधन दिये हैं। इसमें यदि विषम-सम्बन्धी कुछ संशोधन स्वाध्यायप्रेमियों के व्यानमें आवे तो उनकी सूचना मिलनेपर परामर्श करके उन्हें अगले गागमें दे दिया जायगा। जयधवलाके पूरे गुद्रणके अनमें इस ग्रन्थ के विषय-गम्बन्पी पव संशोधनोंको देनेका भी हमारा विचार है।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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