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________________ उत्तरपट्टिदिदीरा वडिट्टि दिउदीराणगद्दारं ३८५ ०६२ ] एवं जाय० । 1 १८३०. अंतरा० दुविहो शि० - श्रघेण आदेसेण य । श्रघेण मिच्छ०'सश्रसंखे० भागवडि-हाणि वडि० णत्थि अंतरं । सेसपदा० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । वरि संखे० गुणहारिण अत्रत्त० जह० एस० उक० सत्त रार्दिदियाणि । स० [अ० ज०भंगो । असंखे० गुणहाणि० जह० एस० उक० चासपुधत्तं । सम्म असंखे० भागहाशि० णत्थि अंतरं । श्रवडि श्रवत्तः भुजमंगो । सेसपदा० जह० एम०, उक्क० चडवीसमोर ते सादिरेगे । असंखे० गुणहाणि० जह० एस ०, I t ० दम्मासं । सम्मामि० सच्चपदा० जह० एस० उक० पलिदो० असंखे ० भागो । मार्गदावोस की सुविक्रि भागमणि श्रव ड्डि० - श्रवत्त० पत्थि अंतरं । सेसपदा० जह० एस० उक० तोमु० । णवरि चदुसंज० असंखे० गुणचड्डि० जह० एयस०, उक्क० वासपुधत्तं । श्रसंखे गुणहाणि० जह० एयस०, उक्क० वासं सादिरेय । " ८ वरि लोसंभजल० असंखं० गुणहारिण० जह० एगस०, उक्क० छम्मासं । इत्थवे ० पुरिसके० असंखे० भागहारिण-अवट्टि० णत्थि अंतरं । सेसप० जह० एस० उक० संख्यात समय कहना चाहिए । इसीप्रकार अनाहारक मार्गातक जानना चाहिए। 1 $ ८३० अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है--बोध और आदेश । श्रघसे मिध्यात्व और नपुंसक वेद की असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थिति उदीरको अन्तरकाल नहीं है । शेष पदोंकी स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इतनी विशेषता है कि संख्यात गुणहानि और अवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर सात दिन-रात हैं। नपुंसकवेदी वक्तव्य स्थितिके उदीरकों का भंग भुजगारके समान है । असंख्यात गुणहानि स्थिति उदीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्णपृथक्त्वप्रमाण है । सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है । अवस्थित और अवक्तव्य स्थिति के उदीरकों का भंग भुजगार के समान हैं । शेष पदोंकी स्थिति के उदोरकों का जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात प्रमाण है । असंख्यात गुणहानि स्थिति के उद्दीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना प्रमाण हैं । सम्यग्मिध्यात्व के सब पदों की स्थिति के उदीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके प्रसंख्यातवें भागप्रमाण है। सोलह कपाय और छह नोकपायकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि, अवस्थित और अवक्तव्य स्थिति के उदीरकों का अन्तरकाल नहीं है । शेष पड़की स्थिति के उदीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इतनी विशेषता है कि चार संज्वलनकी असंख्यात गुणवृद्धि स्थिति के I rator जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। असंख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्वर साधिक एक वर्ष है। इतनी विशेषता है कि लोभसंज्वलनकी असंख्यात गुणद्दानि स्थितिके उदीरकोंका अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी ख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है। शेष पकी 1 ४६
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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