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________________ गा०६२] उत्तरपयडिटिदिनदीरणाए. वडिविदिजदीरणाणियोगदारं ३७७ ४ ८१३. परिमाणाणु० दुविहो णिक-पोषेण आदेसेण य | ओघेण मिच्छ०"पुंस० असंखेजभागवडि-हाणि-अवढि० केसि० ? अर्णता। सेसपदा० केसि ? असंखेजा । णवरि णबुंसक असंखे०गुणहाणि केनि० ? संखेजा । सम्म० असंखेगुणहाणि० के० ? संखेजा । सेसपदा० के० १ असंखेञ्जा । एवमिस्थिवेद-पुरिसवेद० । णवरि पुरिसवे० असंखे०गुणवडि० के० १ सेर्खा सोलसक०-छण्णोक० मिच्छत्तमंगो । वरि अयत्त० अणता। चदुसंजल० असंखे गुणववि-हाणि केत्ति ? संखेजा । ८१४. सव्यणेरइय०-सव्यपंचिदियतिरिक्ख-मणुसअपजाविशिदवार भवणाद जाव एवरीवजा त्ति अप्पप्पणो पयडीणं सन्चपदा० के० ? असंखेना । 3८१५. तिरिक्खेसु सव्यपयडी० सवपदा० अोघं । मणुसेसु मिच्छ०-णबुंसक असंखे गुणहाणि-अवत्त० के० ? संखेजा । सेसपदा० केत्ति ? असंखेजा । एवं चसंजलण। रणवरि अवत्त० केत्ति ? असंखेजा । सम्म-सम्मामि०-इस्थिवेपुरिसवे. मुखपदा० के० १ संखेजा । बारसक०-दण्णोक सवपदा० के०? असंखेजा। मणुसपजत्त-मणुसिणी-सव्वदेवा० अप्पप्पणो पयडी० सवपदा० के० १ संखआ । ६८१३. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-प्रोध और आदेश । ओषसे मिथ्यात्व और नपुसकवेदकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात है। इतनी विशेषता है कि नपुसकवेदकी असंख्यात गुगाहानि स्थितिके उदीरक जीव कितने है । संख्यात हैं । सम्यकस्वकी असंख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरक जीव कितने है ? संख्यात हैं। शेष पद की स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसीप्रकार स्त्रीधेद और पुरुपवेदकी अपेक्षा ज्ञानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पुरुपवेदी असंख्यात गुणवृद्धिके चंदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। सोलह कषाय और छह नाकपायका भंग भिध्यात्वके समान है। इतनी विशेषता है कि इनकी प्रवक्तव्य स्थितिके उदोरक जोव अनन्त हैं। चार संज्वलनकी असंख्यात गुग्णबृद्धि और असंख्यात गुणहा के उदीरक जीत्र कितने हैं ? संख्यात हैं। ८१४. सब नारकी, सघ पंचेन्द्रिय तियंच, मनुष्य अपर्याप्त सामान्य देव तथा भवनवासियोंसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें अपनी-अपनी प्रकृतियों के सब पदोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। ६८१५. तिर्यचौम सब प्रकृतियोंके सत्र पदोंके उदीरक जीवोंका भंग श्रोधके समान है । मनुष्यों में मिथ्यात्व और नपुसकवेदकी असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्य स्थितिके दीरक जीव कितने हैं ? संख्याप्त हैं। शेष पदों के उदीरक जीव कितने हैं! असंख्यात हैं। इसीप्रकार चार संज्वलनकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि प्रवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके सन पदों की स्थिति के पदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। बारह कषाय और छह नोकषायके सब पड़ों की स्थिति के उदीरक जीव कितने है ? असंख्यात है। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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