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________________ [ वेदगो जयघवलासहिदे कसायपाहुडे मागहा० संखेा भागा। अवडि० संखे०भागो। सेसपदा० अणंतभागो । एवं सोखसक०-छाणोक०। णवरि अवत्त. असंखे०भागो | सम्म०-सम्मामि० असंखेमागहा. असंखेजा भागा। सेसपदा० असंखे०भागो। इथिवे.-पृरिसवे. अत्रहि. सं० भागो। असंखे भागहाणि० संखेजा भागा । सेसपदा० असंखे भागो । एवं लिरिक्खा। ६८११. सपणेरड्य-सव्वचिंदियतिरिक्ख-मणुसअपज. देवा भवणादि जाब सहस्सारा ति सवपयडी अवढि० संखे०भागो । असंखे०भागहाणि संखेजा भागा। खेसपदा० असंखे भागो । णवरि जम्मि सम्म०-सम्मामि० अस्थि तम्मि सन्चपदाणमोघं । ६.८१२. मणुसेसु सम्म०-सम्माभि०-इस्थिवेद-पुरिसवेद० असंखे०भागहाणिक संखेमा भागा। सेसपदा० संखे भागो। सेसपयडीणं णारयभंगो । पजत्त-मणुसिणीसम्बहुदेवेसु सत्रपयडीएमसंखे०भागहाणि संखेज्जा भागा | सेसपदा० संखे भागो। माणदादि अवराजिदा ति अप्पप्पणो पयडीणमसंखे०भागहाणि. असंखेजा भाया । सेसपदा० असंखे० भागो । एवं जाव० । भागप्रमाण है ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यात भागहानि स्थिनिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। अवस्थित स्थिसिके उदीरक जीव संख्यात भागमा होता म्हाराज . पदोंके उचीरफ जीव अनन्त भागप्रमाण हैं। इसीप्रकार सीलह कैंपाय और छहै नोकषायकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी श्रवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीव असंख्यातवे भागप्रमाण हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिके वहीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव संख्यात भागप्रमाण है। मसंख्यात भागहानि स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदोरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । इसीप्रकार विर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। ६.११. सब नारकी, सब पंचेन्द्रिय तियंच, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर सहस्त्रार कल्पतकके देवोंमें सब प्रकृतियोंकी अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यात भागहानि स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण है। शेष पदोंके उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। इतनी विशेषता है कि जहाँ सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व है वहाँ सब पोका भंग श्रोधके समान है। ६८१२. मनुष्यों में सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्त्र, स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी असंख्यात भागहानि स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं । शेष प्रकृवियों की अपेक्षा भंग नारकियोंके समान है। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें सब प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानि स्थितिके उदोरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण है । आनतकल्पसे लेकर भपराजित कल्पतकके देवोंमें अपनी-अपनी प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानि स्थितिके श्रीरक जीष असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। इसीप्रकार बनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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