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________________ ३६६ अयपबलासहिदे कसायपाहुड़े मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी म्हारोगा . -n ... ... ...... ..mara. अंतोनु । सेसपदाणं जहण्णुक्क० एगस० । ७९७. अणुद्दिसादि सबट्ठा ति सम्म०-पुरिसवेद० असंखे०भागहाणि. जह. एयस० अंतोमु०, उक्क० सगहिदी। सेसपदा जह• उक्क० एगस | बारसक०छण्णोक. आणदभंगो । एवं जावः । १७९८, अंतराणु० दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । अोघेण मिच्छ. असंखे०भागवडि-अवढि जह० एगस०, उक्क० तेवद्विसागरोवमसदं तीहि पलिदोवमेहिं सादिरेयं । असंखे० भागहाणि जह० एयस०, उक्क बेछावद्धिसागरोवमारिण देसूणाणि । दोपडि-हाणि० जह० एम० अंतोमु०, उक० अणंतकालमसंखेजा० । असंखे० गुणहाणि जह० पलिदो० असंख० भागो, अवत्त० जह• अंतोमु०, उक्क. दोएहं पि उवठ्ठपोरालपरियट्ट । एवमणंताणु०४। णवरि असंख-गुणहाणि णस्थि । अवत्ता जह अंतोमु०, उक्क० वेछावहिसागरो० देसणाणि । एवमट्टकः । वरि असंखे०भागहाणि-अवत्त० जह० एयस० अंतोमु०, उक० पुचकोडी देसूरमा । एवं हस्स-रदि० । वरि असंखे०भागहाणि-अयत्त० जह. एयस. अंतोमु०, उक० तेत्तीसं सागरोवमं अन्तर्मुहूर्त है। शेष पदोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। ९७६७. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सम्यक्त्व और पुरुषवेदकी संख्यास भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय और अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। शेष पदों का जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। बारह कषाय और छह नोकषायका भंग पानतकल्पके समान है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। ६६८. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-प्रोव और आदेश | भोषसे मिध्यात्यकी असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थित स्थितिउदीरणाका जवन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर तीन पल्य अधिक साधिक एकसौ त्रेसठ सागर है। असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है. और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छयासठ सागर है। दो वृद्धि और दो स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय और अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुदलपरिवर्तनप्रमाण है। असंख्यात गुणहानिका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है और प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और दोनोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुलपरिवर्तनप्रमाण है। इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्कको अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी असंख्यात गुणहानि स्थिति उदारणा नहीं है। अवक्तव्य स्थितिउहीरणा का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उस्कृष्ट अन्सर कुछ कम दो छयासठ सागरप्रमाण है। इसीप्रकार पाठ कवायकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागहानि और अवक्तव्य स्थिसिउदीरणाका अघन्य अन्तर एक समय और अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। इसीप्रकार हास्य और रमिकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागहानि और प्रवक्तव्य स्थितिउचीरणाका जघन्य अन्तर एक समय और अन्तमुहूर्स है तथा
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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