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________________ गा०६२] उत्तरपयछिद्विदिउदीरणाप. बब्लिडिदिउदीरणाणिमोगदार ३६५ सागरोचमाणि । सम्म० असंखे भागहाणि जह• एगस०, उक० तेत्तीसं सागरो । सेसपदार्ग जह-उका एगैसमाधाएछ साहमादि जाव सहस्सार त्ति | णवरि सगहिदी । हस्स-रदि० अरदि-सोगभंगो। मिच्छ० असंखे भागहाणि० जहः एमस०, उक० अंतोप्नुहुतं । णवरि सहस्सारे हस्स-रदि देवोपं । सोहम्मीसारणे इस्थिवेद० देवोघं । उवरि णस्थि । ७९५. भवण वाणवें०-जोदिसि० सोहम्मभंगो । णवरि सगहिदी । सम्म असंखे० भागहाणि० जह• अंतोमु०, उक० सगद्विदी देसूणा । इत्थिवेद० असंखे०भागहाणि० जह० एयस०, उक्क तिष्णि पलिदो० देसूणाणि पलिदो० सादिरेयाणि २ । ७९६. प्राणदादि जाव वगेवजा नि मिच्छ०-पुरिसवे. असंखे भागहाणिक जह० अंतोमु०, उक्क. सगद्विदीओ णादवाओ। सेसपदाणं जह• उक्क० एयस० । सम्म० असंखे०भागहाणि जह• एयस०, उक० सगद्विदी देसूणा । सेसपदाणं जह. उक्क० एयस०। सम्मामि० असंखे०भागहाणिक जह० उक० अंतोमु० । अवत्त. जह ० उक्क० एयम० | सोलसक०-इण्णोक० असंखे०भागहाणि जह• एगस०, उक्क० कुछ कम पचवन पल्य और तेतीस सागर हैं। सम्यक्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिदीरणाका अघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल ते तीस सागर है। शेप पदाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। इसीप्रकार सौधर्म कल्पसे लेकर सहस्रार कल्पतक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। हास्य और रतिका भंग श्ररति और शोकके समान है। मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानि स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। इतनी विशेषता है कि सहस्त्रार कल्पमें हास्य-रतिका भंग सामान्य देवोंके समान है। सौधर्म और ऐशानकल्पमें स्त्रीवेदका भंग सामान्य देवोंके समान है। ऊपर स्त्रीवेद नहीं है। ७६५. भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिपी देवोंमें सौधर्म कल्पके समान भंग है। इतनी विशेपता है कि अपनी स्थिति कहनी चाहिए। सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिउदारणाका जघन्य काल अन्त मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है। स्त्रीवेदकी असंख्यात भागहानि स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्प, साधिक एक पल्य और साधिक एक पल्य है। ६६. आनतकल्पसे लेकर नौ अवेयकतकके देवों में मिथ्यात्न और पुरुषवेदको असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अपनीअपनी स्थितिप्रमाण जानना चाहिए। शेष पदोंका जपन्य और उत्कृष्ट फाल एक समय है। सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिजदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है। शेष पदोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। सम्यग्मिध्यात्यकी असंख्यात भागहानि स्थिति उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अवतव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। सोलह कषाय और छह नोकषायकी असंख्यात भागहानि स्थितिजदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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