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________________ जगवलासहिये कसायपाहुडे ३६० ति । एवं सरणकुमारादि सहस्सार ति । णवरि इस्थिवेदो णत्थि | Q १७८८ आणदादि णचगेवञ्जा त्तिमिच्छ०- प्रांता०४ सव्वपदा कस्स १ अण्णद० मिच्छाइट्टि० | सम्म० सम्पदा सम्माइट्टिस्स | सम्मामिच्द्र० सगपदा सम्मामिच्छाइट्टिस्स | बारसक० सत्तणोक० सगपदा कस्स ? अण्णद० सम्माइडि० मिच्छाइडि० वा । एवं जाव० । [ वेदगो < १७८९. कालानु० दुविहो णि० - श्रधेण आदेसेल य । श्रघेण मिच्छ० तिष्णिवडि० जह० एम०, उक० वे समया । श्रसंखे० भागहाणि० जह० एयस०, उक० एकतीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि । तिरिणहाणि श्रवत्त० जहण्णुक० एयसमओ । श्रहि० जह० एगममश्र, उक० अंतोमु० | सम्म० असंखे ० भागहाणि ० जह० अंतो०, उक्क० यावद्विसागरो० देखूणाणि । सेसपदा० जह० उक० एगसमओ | सम्मामि० असंखे ० भागहारिण० जह० उक० अंतोमु० | दोहाणि अवत० जह० उक्क० एगमः | सोलसक--भय-दुर्गुछ० असंखे० भागवडि० जह० एस० उक० सत्तारस समया भागहाणि श्रम, उतीमु० | सेसपदाणं मिच्छत्तभंगी । वरि चदुसंजल० असंखेजगुणवडि-हाणि० जह० उक० एस० । पुरिसवे० असंखे०जानना चाहिए। इसीप्रकार सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्पतकके क्षेत्रों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद् नहीं है। 7 ७८८. नवकल्प से लेकर नी मैत्रेयकतक के देशों में मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धीare सब के होते हैं ? श्रन्यतर मिध्यादृष्टिके होते हैं। सम्यके अपने पद सम्यग्दपिके होते हैं । सम्यग्मिथ्यास्त्र के अपने पद सम्यग्मिध्यादृष्टिके होते हैं। बारह कषाय और सात नोकराके अपने पद किसके होते हैं ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिध्यादृटिके होते हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए | ९ ७८. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— श्रघ और आदेश । श्रोषसे मिध्यात्वकी दीन वृद्धि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागर है। तीन हानि और अवक्तव्य स्थितिउदीरखाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अवस्थित स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम छासठ सागर हैं। शेष पद स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यात भागद्दानि स्थितिउदीरणाका जनन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। दो हानि और अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृ काल एक समय है | सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यात भागवृद्धि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सत्रह समय है । असंख्यात भागद्दानि स्थितिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। शेष पदोंका भंग मिथ्यात्व के समान है । इतनी विशेषता है कि चार संज्वलनकी असंख्यात गुणवृद्धि और
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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