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________________ j मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज उत्तरपयडिद्विदिउदीरणाए वडिडिदिदीरा ३५७ मा० ६२ ] गारं त्थि । पञ्जए इत्थवेदो गत्थि । मणुसिणी० पुरिस० एस० णत्थि | ६ ७८१. श्रादेसेण णेरड्य० मिच्छ० सम्मामि० श्रोषं । सम्म० - सोलसक०सत्तणोक० अस्थि तिष्णिवड्डि- हाणि वडि० अवत्त० । खबरि बुंस० अवत० स्थि । एवं सव्वरइय० । ९ ७८२ तिरिक्खेसु मिच्छ० सम्म० सम्मामि० सोलसक० छण्णोक० णारयभंगो | तिणिवेद अस्थि तिष्णिवड्डि हारिण- श्रवट्टि० - अवत्त० । एवं पंचिदियतिरिक्खतिर । वरि पज्जतए इत्थिवेदो णत्थि । जोणिणीसु पुरिसवेद - णवुंस० णत्थि । इत्थवेद० अवत्तः णत्थि । पंचिदियतिरिक्खञ्चपज ० - मणुस पज० मिच्छ५- णत्रु स० अस्थि विष्णिवडितिष्णिहाणि वडि० | सोलसक० ऋणोक० पारयभंगो | ३७८३. देवेसु दंसणतिय - सोलसक० अणोक० तिरिक्खभंगो । णवरि इत्थवेद - पुरिसवेद० अवत्त० णत्थि । एवं भणादि जाव सोहम्मीसारखा ति । एवं सणकुमारादि जाव सहस्सारा त्ति । णवरि इत्थवेदो स्थि । ९ ७८४. आणदादि एत्रमेवजाति मिच्छ० अस्थि असंखे० भागहारिण-संखे० भागहाणि संखे० गुणहाणि अवत्त० उदीर० । सम्म० तिण्णिवड्डि- दोहाणि अवत्त०चाहिए | इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदक असंख्यात गुणवृद्धि नहीं है। पर्याटकों में स्त्रीवेद नहीं है तथा मनुष्यनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है । } ६५८१. आदेश नारकिया में मिथ्यात्व और सम्यग्मिध्यास्त्रका भंग श्रधके समान है। सम्यक्त्व, सोलह कषाय और सात नोकपायकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिउदीरणा है। इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदको अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है । इसीप्रकार सब नारकियों में जानना चाहिए । ७ ६७८२ तिर्यञ्चा में मिध्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकाया भंग नारकियोंके समान है। तीन वेदोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिउदीरणा है। इसीप्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है । योनिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है । इनमें स्त्रीवेदकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यक्रच अपर्याप्त और मनुष्य पर्यातकों में मिध्यात्व और नपुंसक वेदकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित स्थितिउदीरणा है | सोलह कपाय और छह नोकषायका भंग नारकियों के समान है । ६७८३. देवों में तीन दर्शनमोहनीय, सोलह कषाय और आठ मोकषायका भंग सामान्य तिर्यों के समान है । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है । इसीप्रकार भवनवासियोंसे लेकर सौधर्म और पेशान कल्पतकके देवों में जानना चाहिए तथा इसीप्रकार सनत्कुमार कल्पसे लेकर ससार कल्पतकके देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद नहीं है । ७४. नतकल्पसे लेकर नौ प्रवेयकतकके देवोंमें मिथ्यात्व की असंख्यात भागहानि, संख्यात भागहानि, असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्य स्थितिउदीरणा है । सम्यक्त्वकी तीन
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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