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________________ ३५६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ णवरि सम्म सव्यस्थोवा उक्क० हाणी। बड्डी संखे गुणा | अणुद्दिसादि सव्वट्ठा त्ति णस्थि अप्पाबहुअं। एवं जाव० । ७७८, जहः पयद । दुविहो णि.--ोघेण श्रादेसेण य । श्रोघेण मिच्छ.. सोलसक०-णवणोक-सम्म० जह० बड्डी हाणी अवट्ठाणाणि सरिसाणि । सम्मामि० णस्थि अप्पाबहुअं। ७७९. श्रादेसेण सधणेग्इय०-सच्चतिरिक्ख-सन्धमणुस-देवा भवणादि जाव सहस्सारा त्ति जाओ पयडीओ उदीरिजति तासिमोघं । आणदादि णयगेवजा त्ति णत्थि अप्पाबहुअं । गरि सम्म० सन्चथोवा जहणिया हाणी। जहरिणया बड्डी असंखेजगुणा । अणुद्दिसापिला तिमयि श्रीप्पवित्राणाची जागान ७८०. बड्डिष्टिदिउदीरणाए तत्थ इमाणि तेरस अणियोगद्दाराणिसमृक्तित्तणा जाव अपायहुए ति । समुकिवणाणु० दुविहो गि-अोघेण आदेसेण य । श्रोघेण मिच्छ०-सम्म० इस्थिवे०-णस० अत्थि तिएिणववि-चत्तारिहाणिअवद्विदाणि-अवत्त० । सम्मामि० अस्थि तिणिहाणि-अवत्त० । बारसक० छण्णोक० अस्थि तिण्णिववि-हाणि-अवढि०-अयत्त । चदुसंज०-पुरिसवे० अस्थि चत्तारिखड्डिहाणि-अवठ्ठाणमवत्तव्ययं च । एवं मणुसतिए । रणवरि पुरिसवे. असंखेगुणबड्डी० है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट हानि सयसे स्तोक है। उससे उत्कृष्ट वृद्धि । संख्यातगुणी है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धिनकके देवों में अल्पबहुत्व नहीं है। इसीप्रकार . अनाहारक मागेरणातक जानना चाहिए। ७८. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है.-ओघ और आदेश । मोघसे मिध्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय और सम्यक्त्वकी जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान समान हैं। सम्यग्मिथ्यात्वका अल्पबहुत्व नहीं है। ६७७६. श्रादेशसे सब नारकी, सब तिर्यञ्च, सब मनुष्य, देव और भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकक देवों में जिन प्रकृतियाकी उदीरंगा होती है उनका भंग ओघके समान है। आनतकल्पसे लेकर नौ अवेयकतकके देवों में अल्पबहुत्व नहीं है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी जघन्य हानि सबसे स्तोक है। उससे जघन्य वृद्धि असंख्यातगुणी है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धिलकके देवोंमें अल्पबहुत्व नहीं है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। ६७८०. वृद्धि स्थितिउदीरणाका प्रकरण है। उसमें ये तेरह अनुयोगद्वार हैंसमुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व तक । समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैऔर और प्रादेश। ओघसे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, स्त्रीवेद और नपुसकवेदकी तीन वृद्धि, चार हानि, अवस्थान और अवक्तव्य स्थिति उदारणा है। सम्यग्मिध्यात्वकी तीन हानि और अवक्तव्य स्थितिउदीरणा है। बारह कषाय और छह नोकपायकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अबक्तव्य स्थितिउदीरणा है। चार संज्वलन और पुरुषवेदकी चार वृद्धि, चार हानि, अवस्थान और प्रवक्तव्य स्थिति उदीरणा है। इसीप्रकार मनुध्यत्रिकमें जानना
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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