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________________ जयघषलासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो. ६७७३. अणुद्दिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म०-बारसक०-सत्तणोक० उक्क • हाणी कम्स ? अपणद० अर्णताणुबंधि विसंजोजयस्स पढमे छिदिखंडए हदे तस्स उक. हाणी । एवं जाव० । ७७४, जहण्णए पयदं। दुविहो णि-पोधेण श्रादेसेण य । ओषेण मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक० जह० वड्डी कस्स ? अएणद. जो समयणहिदिमुदीरेमाणो उकस्सद्विदिसुदीरेदि तस्स जह० वड्डी। जह० हाणो कस्म ? अण्णद. जो उक० द्विदिमुदीरेमारणो समऊणहिदिमुदीरेदि तस्स जह० हाणी । एगदरस्थावद्वाणं | सम्भ० जइ. बड्डी कस्स १ अण्णद० जो पुच्चुप्पण्णादो सम्मत्तादो मिच्छत्तस्स दुसमयुत्तरं मरिलिक्विंधिवासम्मतपडिवण्णी तस्स विदियसमय वेदगसम्माइहिस्स जह० वड्डी | जब० अवहारणमुक्कस्मभंगो। जह० हाणी कस्स ! अण्णद० अधहिदि गालेमाणयस्स तस्स जह• हाणी । सम्मामि० जह० हाणी कस्स ? अण्ण अधदिदि गालेमाणगस्स । 5७७५. प्रादेसेण सत्रणेरइय-सव्यतिरिक्ख-सब्वमणुस्स-देवा भवणादि जाव सहस्सार त्ति जाओ पयडीओ उदीरिजंति तासिमोघं | श्राणदादि पवगेवजा सि ७७३. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवों सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात मोकषायकी उत्कृष्ट हानि स्थिति उदीरणा किसके होती है ? अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करनेवालेके प्रथम स्थितिकाण्डकका घात करनेपर उनकी उत्कृष्ट हानि स्थितिउदीरणा होती है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणाचक जानना चाहिए। ६७७४. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-मोघ और भादेश । भोरसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायकी जघन्य वृद्धि स्थितिजदीरणा किसके होती है जो एक समय कम स्थितिकी उदीरणा करनेवाला जीव उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा करता है अन्यतर उसके जन प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि स्थितिउदीरणा होती है । जघन्य हानि स्थितिउदीरणा किसके होती है जो उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा करनेवाला जीव एक समय कम स्थितिकी उदीरणा करता है अन्यतर उसके उन प्रकृतियोंकी जघन्य हानि स्थितिउदीरणा होती है। तथा किसी एक स्थानपर जघन्य अवस्थान होता है। सम्यक्त्वकी जघन्य वृद्धि स्थितिउदीरणा किसके होती है ? जो पूर्वमें उत्पन्न हुए सम्यक्त्वकी स्थितिसे मिथ्यात्वकी दो समय अधिक स्थितिका बन्ध कर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ, दूसरे समयवर्ती वेदकसम्यग्दृष्टि अन्यतर उस सभ्यग्दृष्टिके उसकी जघन्य वृद्धि स्थितिउदीरणा होती है। जघन्य अवस्थानका भंग उत्कृष्टके समान है। जघन्य हानि स्थिति उदीरणा किसके होती है ? अधःस्थितिको गलानेवाले अन्यतर उस जीवके उसकी जघन्य हानि स्थिति उदीरणा होती है। सभ्यग्मिध्यात्वकी जघन्य हानि स्थिति उदीरणा किसके होती है ? अधःस्थितिको गलानेवाले अन्यतर जीवके उसकी जघन्य हानि स्थितिउदीरणा होती है। ९७७५. आदेशसे सच नारकी, सब तिर्यञ्च, सब मनुष्य, देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देव जिन प्रकृतियोंकी प्रदीरणा करते हैं उनका भंग प्रोपके समान है।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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