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________________ उत्तरपयडिडिदिउदीरणाए पदवियोगारं ३५३ पंविदिषतिरिक्त मिच्छ० - सोलसक० सत्तणोक० उक० वड्डी कस्स ? अगद० जो तप्पा ओग्गजहणट्ठिदिमुदीरे माणो तप्पा ओग्गउक्क०द्विदमुदीरेदि तस्स उक्क० बढी । तस्से से काले उक्क० श्रवाणं । उक्क हाणी कस्स ? अण्णदरस्स मणुस्स - मणुस्सिणीए वा पंचिदियतिरिक्खजोणिणीयस्स वा उस्सट्टिदि वादयमाणो अपजतपसु उववरणो तस्त्र उक्क० डिदिखंडगे हदे तस्स उक० हाणी । गा० ६२] १७७२. श्राणदादि गाववजा त्ति मिच्छ०-सोलसक० सत्तणोक० उक० हाणी कस्स ? अण्णद० तप्पाश्रोग्गउक० डिदिमुदीरेमाणो पढमसम्मत्तादिमुहेण पढमे द्विदिखंडए हदे तस्स उक० हाणी | सम्म० उक० वड्डी० कस्स १ प्रणद० जो वेदगसम्मत्तपाश्रोग्गजहण्णडिदिसंतकम्मि० सम्मत्तं पडित्रणो तस्य विदिवसमयवेदसम्माइट्टिस्स उक वही । उक० दाणी कस्स १ अण्णद० जो तप्पा योग्गउक०द्विदिसंतकमि० श्रणंताणुर्वधि विसंजोजयस्स पढमे ट्ठिदिखंडए हृदे तस्स उक्क० हाणी | सम्मामि० उ० हाणी कस्स १ अण्णद० अट्ठिदिं गालेमाणमस्स तस्स उक० हाणी | ६ Ame hain. 0 करते हैं उनमें उनका भंग ओघ के समान है । ६ ७७१. पचेन्द्रिय तिर्यन अपर्याप्त और मनुष्य अपर्यातकों में मिध्यात्व, सोलह कपाय और सात नोकपायकी उत्कृष्ट वृद्धि स्थितिउदीरणा किसके होती है ? जो तत्रायोग्य जघन्य स्थितिकी उदीरणा करनेवाला जीव तत्प्रायोग्य उत्कुष्ट स्थितिकी उदीरणा करता है अन्यतर उसके उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा होती है । उसीके तदनन्तर समय में उत्कृष्ट अवस्थान होता है । उत्कृष्ट दानि स्थितिउदीरणा किसके होती है ? जो मनुष्य या मनुष्यिती या पञ्चेन्द्रिय तिर्यखयोनि जीव उत्कृष्ट स्थितिका घात करता हुआ अपयशको उत्पन्न हुआ अन्यतर उस जीवके उत्कृष्ट स्थितिकाडकका घात करनेपर उत्कृष्ट हानि स्थितिउदीरणा होती है । ७ ७७२. अनतकल्पसे लेकर नौ मैत्रेयक तक के दवा में मिथ्यात्य, सोलह कषाय और सात नोकषायकी उत्कृष्ट हानि स्थितिउदीरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थितिको उदीरणा करनेवाला जो जीव प्रथम सम्यक्त्व के अभिमुख होकर प्रथम स्थितिका एडकका घात करता है अन्यतर उसके उत्कृष्ट हानि स्थितिउदीरणा होती हैं। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट वृद्धि स्थितिउदीरणा किसके होती है ? वेदकसम्यक्त्वके प्रायोग्य सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिसत्कर्मवाला जो जीव सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ दूसरे समय में स्थित अन्यतर उम्र वेदकसम्यग्दृष्टि जीवके उत्कृष्ट वृद्धि स्थितिउदीरणा होती है । उत्कृष्ट हानि स्थितिउदीरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मवाले जिस जीवने अनन्तानुबन्धीकी त्रिसंयोजना करते हुए प्रथम स्थितिकाण्डकका घात किया है उसके उत्कृष्ट हानि स्थितिउदीरणा होती है। सम्यग्मिध्यात्वकी उत्कृष्ट हानि स्थितिश्वदोरणा किसके होती है ? अधःस्थितिको गलानेवाले अन्यतर जीवके उसकी उत्कृष्ट हानि स्थितिउदीरणा होती है । ४५
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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