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________________ - - --.-Nann. ३४६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो . समया । एवं जाव० । ७५६. अंतराणु० दुविहो णि०-~ोघेण श्रादेसेण य । ओघेण मिच्छसोलसक०-सत्तणोक० सवपदाणं णत्थि अंतरं । णवरि मिल० अवत्त० जह० एयस०, उक्क० सत्त रादिदियाणि । एस. अचत्त० जह० एयस०, उक्क० चउवीसमुहुन् । सम्म० भुज० जह० एयस०, उक० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । अप्प० गस्थि अंतरं । अवत्त० जह० एयस०, उक्क० सत्त रादिदियाणि । अबढि जह० एगसमो , उ० अंगुलस्स असंखे भागो। सम्मानिती अपहासात्ती महाराज एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागी । इस्थिवेद-पुरिसवेद. भुज० जह० एयस०, उक० अंतोमु० । अप्प०-प्रवद्रि पत्थि अंतरं । अवत्त० णस भंगो । एवं तिरिक्खा० ।। मनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। ५६. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-प्रोघ और आदेश। प्रोषसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकपायके सब पदोंके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वको प्रवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात दिन-रात है। नपुसकवेदकी अबक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक सगय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल चौबीस मुहूर्त है। सम्यक्त्वकी भुजगार स्थितिके उदीरकोका जघन्य अन्तरफाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक चौबीस दिन रात है। अल्पतर स्थितिके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । प्रवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात दिन-राम है। अवस्थित स्थितिके उदीरकीका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल श्रावलिके असंख्यातचे भागप्रमाण है। सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर और अवक्तव्य स्थितिके चदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्य के असंख्यासर्वे भागप्रमाण है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी भुजगार स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। अल्पतर और अवस्थित स्थितिके उदीरकोका अन्तरकाल नहीं है। प्रवक्तव्य स्थिति के उदीरकोंका भंग नपुसकवेदके समान है। इसीप्रकार सामान्य तियंञ्चामें जानना चाहिए । विशेषार्थ-आयके अनुसार व्यय होता है इस नियमके अनुसार उपशमसभ्यक्त्वकी प्रवक्तव्य स्थितिके बदीरकोंके उत्कृष्ट अन्तरकालके समान यहाँ मिथ्यात्यकी प्रवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका उत्कृष्ट अन्तर सान दिन-रात कहा है। नपुसकवेदकी प्रवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीव सामान्यसे यदि अधिकसे अधिक काल तक न हों तो चौबीस मुहूर्त तक नहीं होते । इसीसे यहाँ इसकी अवक्तव्य स्थिति के उदीरकोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल चौबीस मुहूर्त कहा है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका अन्तरकाल इतना ही है, इसलिए उसे नपुंसकवेदके समान जानने की सूचना की है। जो मिथ्याष्टि जीव सम्यक्त्वके सत्कर्मसे अधिक मिध्यात्वको स्थिति बाँधकर स्थितिघात किये बिना वेदकसम्यग्दृष्टि होते हैं उनके सम्यक्त्वकी भुजगार स्थितिउदीरणा बनती है। यतः यह उत्कृष्टरूपसे साधिक चौबीस दिनरातके अन्तरसे प्राप्त होती है, इसलिए सम्यक्त्वकी भुजगार स्थिति के उदीरकोंका उत्कृष्ट अन्तर.
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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