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________________ जयघवला खहिदे कसायपाहुडे ३७५२. आदेसेण णेरड्य० मिच्छ०-सोलसक० सत्तणोक० अप्प० श्रवडि ० सव्वद्धा । सेसपदा० जह० एम०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । सम्म०सम्मामि० श्रघं । एवं सव्वणेरइय० । ३४४ [ वेदगी .. , - मिच्छ० - सोलसक० ७५३. पंक्तिकार अडि० सच्चद्वा । सेसपा० जह० एस० उ० ग्रावलि असंखे० भागो । वरि सम्म० सम्मामि० श्रोधं । पंचि०तिरिक्ख० अपज० सच्चपयडीणं अप० श्रवद्वि० सव्वद्धा । सेमपदा जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । मणुसेसु सतलोक पंचिदियतिरिक्खभंगो | णवरि मिच्छ० उक्क० संखेजा समया । इत्थिवे ० पुरिसवे० अप्प०-अबड्डि ० सेसपदा० जह० एम०, उक्क० संखेजा समया । सम्मामि० अप्प० जह० उक्क० तो० | अवत्त० सम्मतभंगो | I स० स० जह० एस ०, ० सम्म० अध्य० सच्वद्धा । गुणका एक जीवको अपेक्षा भी उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त हैं, इसलिए यहाँ सम्यग्मिथ्यात्वकी पर स्थिति उरकोंका उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है । ७५२. आदेश से नारकियोंमें मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायकी अल्पतर और अवस्थित स्थिति के उदीरकों का काल सर्वदा है। शेष पदोंके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वका भंग प्रोध के समान है । इसीप्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए । ९ ७५३. पचेन्द्रिय तिर्यश्वत्रिक में सब प्रकृतियों की अल्पतर और अवस्थित स्थिति के उदीरकों का काल सर्वदा है। शेष पदोंके उदीरकों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलि असंख्यातवें भागप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका मंग आपके समान है । पचेन्द्रिय तिर्यश्व पर्यत जीवों में सब प्रकृतियोंकी अल्पतर और अवस्थित स्थिति उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पढ़ोंके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल भावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। मनुष्यों में मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायका भंग पश्चेन्द्रिय तिर्यखां के समान है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और नपुंसक वेदकी अवक्तव्य स्थितिके उदरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अल्पतर और अवस्थित स्थितिके उदोकोंका तथा सम्यक्त्वकी अल्पतर स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पदों के उदीरकों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । सम्यग्मिथ्यात्व की अल्पतर स्थिति उदीरकोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका भंग सम्यक्त्व के समान है । विशेषार्थ – मनुष्यों में मिध्यात्व, नपुसकवेद, और पुरुषवेदको अवक्तव्य स्थितिकी उदीरणा मनुष्य पर्याप्त तथा मिध्यात्व और स्त्रीवेदकी अवक्तव्य स्थितिकी उदीरणा मनुष्यनी जीव ही करते हैं । यतः इनकी संख्या संख्यात है अतः मनुष्यों में उक्त प्रकृतियों की अवक्तव्य स्थितिकी दीरणा करनेवालों का उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। शेष कथन सुगम है । +
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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