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________________ अयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ बेदगो ७ १७२१. श्रदादि जाव णवमेवजा त्ति मिच्छ० अप्पं० जह० अंतोमुहुतं, उक० सगहिदी । श्रवत्त० जह० उक्क० एस० सम्म० भुज०- अवत० जह० उक० एस० । अप० जह० एस० उ० समडिदी। सम्मापि० ओघं । सोलसक०कृष्णोक० ० अप्प० जह० एस० उक्क० अंतोमु० । अवत्त० जह० उक० एस० । 1 " पुरिसवे० अप्प० जहण्णुक० जणुकरसङ्किदी | ३२८ 2 ३ ७२२. अणुद्दिसादि सबडा सि सम्म० अप्प० जह० एगस०, उक्क० सगट्टिदी | अवत० जह० एयस० उक० एगसमग्र । पुरिसवे० अ० जद्दण्णुक० जणुकस्सदि । चारसक० दण्णोक० अप्प० जह० एस० उक० अंतो० । अवत्त० जह० उक्क० एस० । एवं जाव० । , ६७२३. अंतरा० दुविहो णि० - ओघेण प्रदेसेण य । ओघेण मिच्छ ज० अट्टि० जह० एयस०, उक्क० तेवद्विसागरोपमसदं तीहिं पलिदो मेहिं सादिरेयं । अप्प० जह० एयस०, उक० बेला हिसागरो० देसूणाणि । अवत्त० जह० अंतोमु०, १७२१. नवकल्प से लेकर नौ मैवेयक तकके देवोंमें मिध्यात्व की अल्पतर स्थितिउदीरणा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । अवक्तव्य स्थिकिंकीएका विशिष्टाकाली एका समय है। सम्यक्त्वकी सुजगार और अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अल्पतर स्थितिउदीराका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । सम्यग्मध्यात्वका भंग के समान है । सोलह कषाय और छह नोकषायकी भल्पतर स्थितिउदीरणा का जन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । पुरुषवेदका अल्पतर स्थितिराका जघन्य र उत्कृष्ट काल जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । ६७२२. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सम्यक्त्वकी अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय दें और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल एक समय है । पुरुषवेदी अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। बारह कषाय और छह नोकषायकी अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। १ ७२३. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओ और आदेश | ओघसे मिध्यात्वकी भुजगार और अवस्थित स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्वर तीन पल्य अधिक एकसौ त्रेसठ सागर है । अल्पचर स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छयासठ सागरप्रमाण है । अवक्तव्य (भु) इति पाठः । १. प्रती मिच्छ० जह० __..
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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