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________________ ना० ६२ ] उत्तरपट्टिउदीरणार भुजगाराणियोगारं ३२१ G अवत्त०] कस्स ? अण्णद० मिन्त्राइट्टि० सम्माइट्टिस्स वा । एवं पुरिसवे० | गवरि अवत्त० रात्थि । श्रणुहिसादि सब्बड्डा त्ति वीस पय० सच्चपदा कस्स ? अण्ण६० । एत्थोघपरूवणाए पुरिसवे० चदुसंज लग्भनगारो सम्माहि सुलह जो महाराज मणुसतिए चदुसंजलणभुजगारो बत्तव्वो । वरि एस संभवो एत्थ ण विवक्खियो । एवं जाव० । ६७१४. कालानुगमेण दुविहो णि० - ओषेय श्रादेसेण य । श्रोषेण मिच्ल० भुज० जह० एयस०, उक्क० चत्तारि समया । अप्प०डिदिउदी० जह० एयसमश्र, उक० एकतीसं सागरो० सादिरेयाणि । अवडि० डिदिउदी० जह० एगसमओ, उक० अंतोमुद्दत्तं । अवत >डिदिउदीरणा० जह० उक० एस० । सम्म० ज० अबडि० अवत० डिदिउदी० जह० उक० एस० । श्रध्य० डि दिउदी ० जह० अंतोमु०, उक० छात्र हिसागरो देसूणाणि । सम्मामि० अप्प ०डिदिउदी● जह० उकू० अंतोमु० । अवत्त० जह० उक० एस० । सोलसक० -भय-दुगु छा० भुज० ट्ठिदिउदी ० जह० एस० उक० एगूणवीसं समया । अप० अट्टि० ट्ठिदिउदी ० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । ग्रवत्त० जह० उक० एस० एवं हस्स -रदि० । बारह कषाय और छह नोकषायकी अल्पतर और अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव कौन है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि जीव उदीरक हैं। इसीप्रकार पुरुषवेदके विषय में समझना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें पुरुषवेदकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है। अनुविशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक के देवोंमें बीस प्रकृतियोंके सब पदोंके उदीरक जीव कौन है। अन्यतर atraon हैं । यहाँपर ओघारूपणा के अनुसार पुरुषवेद और चार संज्वलनका भुजगारपद यष्टि भी उपलब्ध होता है । इसीप्रकार मनुष्यत्रिमें चार संज्वलनका भुजगारपद कहना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यह सम्मत्र है इसकी यहाँ विवक्षा नहीं है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणावक जानना चाहिए । ३७१४. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आवेश | प्रोसे मिध्यात्वको भुजगार स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है । अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागर है । अवस्थित स्थितिउदीरणाका जयन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त .' श्रवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सम्यक्त्वकी भुजगार, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम छ्यासठ सागर है । सम्यग्मिथ्यात्व की अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त हूँ । श्रवक्तव्यस्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी भुजगार स्थितिउदीरणाका जवन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल उन्नीस समय है । अल्पतर और अवस्थित स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तत्र्य स्थितिरका जयस्य और उत्कुष्टकाल एक समय है। इसीप्रकार ४१
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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