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________________ गा० ६२] पुत्तरपयडिछिदिउदीरणाप हिदिअप्पाबहु असंखे०गुणा। सम्मामि० जह० द्विदिउदी० असंखे० गुणा ! पुरिसवे० जह० विदिउदी० संखे०गुणा । इत्थि वेद० जह• हिदिउदी. विसेसा० । हस्स-रदि० जह० द्विदिउदी० बिसेसा० । अरदि-सोग जह० विदिउदी. विसेसा० । सोलसक०-भयदुगुंछा० जह• हिदिउदी० विसेसा० । ७०५. भवण-बाणवें० सम्वत्थोया मिच्छ० जह० द्विदिउदी० 1 जद्विदि०७० . असंखेगुणा 1 सम्मामि० जह• द्विदिउदी. असंखे०गुणा । सम्म० जह• हिदिउदी. विसे० । पुरिमवेद० जह० द्विदिउदी० संखेवगुणा । उपरि देवोघं । ७०६. जोदिसि सब्यस्थोवा मिच्छ० जह० टिदिउदी० । जट्टि०३० असंखे०गुणा । सम्मामि० जह० हिदिउदी. असंखे०गुणा । सम्म० ज० टिदिउदी. विसेमा० । बारसक०-अट्ठणोक० जह० द्विदिउदी० संखे.गुणा । अणंताणु०४ जह० विदिउदीधानिक । आचार्य श्री सुविहिासागर जी महाराज ७०७. मोहम्मीसाण सच्चत्योवा मिच्छ० सम्म जह० द्विदिउदी। जट्टि० उ० असंखेन्गुणा । सम्मामि० ज० द्विदिउदी असंखे० गुणा । बारसक-पत्तणोक० जह द्विदिउदी० संखे०गुणा । अणंताणु०४ जह० द्विदिउदी० संखे० गुणा । इस्थिवेद० उससे यस्थिति उदीरशा। असंख्यातगुणी है। उमसे सम्पग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति उदीमा असंख्यातगुगी है 1 उससे पुरुपदकी जघन्य स्थिति उदीरणा संख्यातगुणी है। उससे स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिजदीरणा विशेष अधिक है। उससे हास्य और रतिको जघन्य स्थिति उदीरा विशेष अधिक है। उससे अरति और शोककी जघन्य स्थिति उदीरमा विशेष अधिक है। उससे सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति उदीरणा विशेष अधिक है। 5 ०५. भवनवासी और व्यन्तर देयोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा सबसे स्तोक है। उससे यस्थिति उदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे सम्यरिमध्यात्यकी जघन्य स्थितिउदारणा असंख्यातगुणी है। उससे सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणा संख्यातगुणी है। इससे श्रागे सामान्य देवोंके समान भंग है। ०६. ज्योतिषी देवों में मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा सबसे स्तोक है। उससे यस्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे सम्पग्यिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरण असंख्यातगुणी है। उससे सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति उवारण विशेष अधिक है। उससे बारह कषाय और पाठ नोकधायकी जघन्य स्थिति उदीरणा संख्यातगुणी है। उससे अनन्तानुषन्धीचतुष्ककी जघन्य स्थितिजदीरणा विशेष अधिक है। 5७०७. सौधर्म और ऐशानकल्पमें मिथ्यात्व और सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति उदीरणा सबसे स्तोक है । उससे यस्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है । उससे सम्यग्मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिकदीरणा असंख्यातागणी है। उससे बारह कषाय और सात नोकषायकी जघन्य स्थितिउदीरणा संरळ्यातगुणों है। उससे अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य स्थितिउदारणा संख्यातगुणी
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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