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________________ [ वेदगो 'मार्गदर्शक :- आचार्य प्रा सुधालसाहिासाझाशकडे द्विदिउदी. संखे गुणा । एवं पंचिंदियतिरिक्खेसु । णवरि मोलमक०-भय-दुगुका० जह० द्विदिउदी. सरिसा विससाहिया । एवं पंचिदियतिरिक्खपज० । णवरि इस्थिवेदो गस्थि । ७०२. जोणिणीसु सव्यस्थोवा मिच्छ० जह० द्विदिउदी० । जट्टि उदी० असंखे०गणा । इस्थिवेद० जह० द्विदिउदी० असंखे गुणा । हस्स-रदि० जह० हिदि. उदी० विसेसा० । अरदि-सोग० जह• विदिउदी. विसेसा० । सोलसक०-भय-दुगंला० जह द्विदिउदी. विसेसा० | सम्मामि० जह० विदिउदी० संखे०गुणा । सम्मः जह० द्विदिउदी० बिसेसा० । ६७०३. पंचिंदियतिरिक्खअपज ०-मणुसअपज्ज. सव्वस्थोवा हस्स-रदि० जह० द्विदिउदी० । अरदि-सोग. जह० द्विदिउदी. विसे० । णवुस० जह• द्विदिउदी. त्रिसेसा० । सोलपक०-भय-दुर्गुला० जह० द्विदिउदी. विसेसा० । मिच्छ० जह. हिदिउदी. विसेसा० । मणुसतिए ओघं । वरि पारसक० - भय - दुगु छा० जह ० हिदिउदी० सरिसा । पजत्तइत्थि वेदो णस्थि | मणुसिणी. पुरिसवेणम० एस्थि । ७०४. देवेसु सव्वत्थोवा मिच्छ ०-सम्म० जह० द्विदिउदी० । जहिदि उदी० उदीरणा संख्यातगुणों है। इसीप्रकार पञ्चेन्द्रिय निर्यश्चोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति उदीरणा सहश होकर विशेष अधिक है। इसीप्रकार परचेन्द्रिय तिर्यश्च पर्याप्तकोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है। ६७०२. योनिनी तिर्यञ्चों में मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा सबसे स्तोक है । उससे यस्थितिखदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे हास्य और रतिको जघन्य स्थितिजदीरण। विशेष अधिक है। उससे अरति और शोककी जघन्य स्थितिउतोरणा विशेष अधिक है। उससे सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे सम्यग्मिथ्यात्यकी जघन्य स्थितिउदारणा संख्यातगुणी है । उससे सम्यक्त्वको जघन्य स्थिति उदीरणा विशेष अधिक है। ६७०३. पन्चेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें हास्य और रनिकी जघन्य स्थितिजदीरणा सबसे स्तोक है। उनसे अरति और शोककी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेप अधिक है। उससे नपुसकवेदको जघन्य स्थिति उदीरणा विशेष अधिक है। उससे सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जयन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक हैं। उससे मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। मनुष्यत्रिकमें आपके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणा सदृश है। पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेदकी उदारणा नहीं है. तथा मनुध्यिमियोंमें पुरुषवेद और नपुसकवेदकी उदीरणा नहीं है। { ७०४. देषों में मिथ्यात्व और सम्यक्त्वको जघन्य स्थितिउदीरणा सबसे स्तोक है।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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