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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[वेदगो अजह उदीर० । एवं जाव।।
३८. सादि०-अणादि-धुव०-अधुवाणु० दुविहो णि-ओघे० आदेसेण । ओघेण मिच्छ. उदीर० किं सादि० ४ ? सादिया वा अणादिया वा धुवा वा अद्धवा या । सेसाणं पयडीरगं सादि-अर्बुवाउदीरखाचार्य दिसणारइयजी सधपचडीएं। सादि० अद्भुवा वा । एवं चदुगदीसु । एवं जावः । उदीरणा करनेवाले जीवके अजघन्य उदीरणा होती है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ--ओघसे कमसे कम एक लोभ प्रकृतिकी उदीरणा होती है। यह जघन्य उदीरणा है। अधिकसे अबक एक मिथ्यात्व, सोलह कपायोंमेंसे क्रोध, मान, माया और लोभ जातिकी कोई चार कपाय, हास्य और शोकमेंसे कोई एक, रति और अरतिमेंसे कोई एक, सीनों वेदोंमेंसे कोई एक तथा भय और जुगुप्सा इन दस प्रकृतियोंकी उदीरणा होती है । यह अजघन्य उदीरणा है। मनुष्यत्रिकमें यह प्रोपप्ररूपणा बन जाती है, इसलिए उनमें पोषके समान जाननेकी सूचना की है। नारकियोंमें कमसे कम बारह कषायोंमेंसे क्रोध, मान, माया
और लोभ जातिकी कोई तीन कषाय, हास्य और शोकमेंसे कोई एक, रति और अरतिमेंसे कोई एक तथा एक नपुंसकवेद इन छह प्रकृतियोंकी उदीरणा होती है। यह जघन्य प्रकृति उदीरणा है। अधिकसे अधिक ओघके समान दस प्रकृतियोंकी उदीरणा होती है। मात्र इनमें तीनों वेदोंमेंसे एक नपुंसक वेदकी ही उदीरणा होती है। यह अजघन्य प्रकृति उदीरणा है । नारकियोंके समान सामान्य देवोंमें और ऐशान कल्प तकके देवोंमें व्यवस्था बन जाती है, इसलिए उनमें नारकियोंके समान जाननेकी सूचना की है। मात्र इनमें स्त्रीवेट और पुरुषवेद इनमेंसे कोई एक वेदकी उदीरणा कहनी चाहिए, क्योंकि देवोंमें नपुंसकवेदकी उदीरणा नहीं होती।
आगे नौ प्रैवेयकतकके देवोंमें अन्य सब कथन पूर्वोक्त प्रमाण है। मात्र इनमें एक पुरुषवेदकी ही उदीरणा कहनी चाहिए। तथा नौ अनुदिशादिकमें कमसे कम छह और अधिकसे अधिक नो प्रकृतियोंकी उदीरणा होती है। तिर्यञ्चोंमें पश्चम गुणस्थानकी प्राप्ति सम्भव होनेसे कमसे कम पाँच और अधिकसे अधिक दस प्रकृतियोंकी उदीरणा सम्भव है। तथा पश्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में एक मिथ्यात्य गुणस्थान सम्भव होनेसे कमसे कम आठ और अधिकसे अधिक दस प्रकृतियोंकी उदीरणा सम्भव है। सर्वत्र अजवन्य उदीरणाके जो अन्य विकल्प सम्भव है वे यथायोग्य लगा लेना चाहिए। यह जघन्य और अजघन्यकी अपेक्षा व्याख्यान है। यही व्याख्यान उत्कृष्ट अनुत्कृष्टकी अपेक्षासे भी जान लेना चाहिए। मात्र सर्वत्र सबसे अधिक प्रकृतियोंकी उदारणा उत्कृष्ट प्रकृति उदीरणा है और उनसे कम प्रकृतियोंकी उदीरणा अनुत्कृष्ट प्रकृति उदारणा है इस व्याख्यानके अनुसार यह कथन करना चाहिए। सर्वप्रकृति उदारणा और नोसर्वप्रकृति उदीरणाका खुलासा भी इसीप्रकार घटित कर लेना चाहिए।
६३८. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुवानुगमकी 'अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश। ओचसे मिध्यात्वके उदीरक क्या सादि, अनादि, ध्रव या अध्रुव है ? सावि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव है। शेप प्रकृतियोंकी सादि और अध्रुव उदारणा है। आदेशसे नारकियोंमें सब प्रकृतियोंकी सादि और अध्रुव उदीरणा है। इसीप्रकार चारों गतियों में जानना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।