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________________ गा०६२] उत्तरपयडिडिदिउदीरणाए. जीवप्पाबहुध एयसमो, उक० पलिदो० असंखे०भागो। ६८६. मणुसलिए श्रोघं । गणवरि बारमक-भय-दुगुंछ० पंचिंदियनिरिक्सभंगो। णवरि पञ्जत्तएमु इस्थिवेदो कि मणुमिनी सिहालसखुस्सङ पथरिका । अम्हि छम्मासं वासं सादिरेयं तम्हि वासपुधत्तं । ६९०. देवेसु दंसणतिथं णारयभंगो । सेयपय० जह. द्विदिउदी० जह. एयसमश्रो, उक० अंगुलस्स असंखे०भागो। अजह ० णस्थि अंतरं । एवं भवणादि जाव णवगेवजा ति । णवरि भवणा-याणवे-जोदिसि० सम्म विदियपुढविभगो। अणुदिसादि मुबट्ठा ति सम्म०-बारसक०-मत्तणोक. प्राणभंगो । णारि सबढे सम्म० जह• 'द्विदिउदी० जह० एयस०, उक्क० पलिदो० संखे०भागो। अजह० णस्थि अंतरं । एवं जाव। १६९१. भावाणु० सम्वत्थ अोदइओ भावो । ६६९२. अप्पाबहुअं दुविहं-जीवप्पाबहुअं द्विदिअप्पाबहुअं चेदि । जीवअप्पाबहुधे दुविहं-जह. उक्क । उक्कस्से पयदं । दुत्रिहो णि०–ोघेण आदेसेण य । ओषेण मिच्छ०-सोलसक०-पत्तणोक० सम्वत्थोवा उक्क० द्विदिउदी० जीवा | अणुक० विशेषता है कि इनमें अजअन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। १६८६. मनुष्यत्रिक प्रोघके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि बारह कपाय, भय और जुगुप्लाका भंग पञ्चेन्द्रिय नियंचोंके समान है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकामें स्त्रीयेदकी उदीरमा नहीं है तथा मनुपियनियों में पुरुषवेद और नपुसकवेदकी उदीरमा नहीं है। जहाँ छह माह और साधिक एक वर्ष कहा है. वहाँ वर्षपृथक्त्व कहना चाहिए। ६६६०. देवोंमें दर्शनमोहनीयत्रिकका भंग मारकियोंके समान है। शेष प्रकृतियों जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अंगर के असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है। इसीप्रकार भवनवासियोंसे लेकर नौ प्रेधेयक तकके देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सम्यक्त्वका भंग दूसरी पृथिवी के समान है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवों में सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकषायोंका भंग प्रानतकल्पके समान है। इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धिमें सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। १६६१. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र औदयिक भाव है। ७६९२. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-जीव अल्पबहुत्व और स्थितिअल्पबहुत्व 1 जीव अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी उत्कृष्ट
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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