SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मा० ६२ ] उत्तरपयडिडिदिउदीरणाए णाणाजीवेहिं कालो ३०७ "हार्द उदी सुविधिहागर मार्गदर्शक :- आहार्य सहारा क अपज० मिच्छ० एस० जह० ० आवलि० श्रसंखे० भागो । अज० जह० श्रावलिया समयुणा, वुंस० अंतोमुहुत्त, उक० पलिदो० श्रसंखे० भागो | सोलसक० एणोक० एवं चैत्र । णवरि जह० द्विदिउदी० जह० एस०, उक्क पलिदो ० असंखे० भागो ५ ६८४. देवे दंसणतियमोघं । सेसपय० जह० द्विदिउदी० जह० एयसमत्रो, उक० श्रावलि० असंखे० भागो । अजह० सव्वद्धा । एवं भवण० वाणवें० । णवरि सम्म मिच्तभंगो | जोदिसियादि जाव वगेवज्जा चि सखतियमोघं । सेसपय जह० द्विदिउदी० जह० एयसमत्रो, उक्क० संखेज्जा समया । श्रजह० सव्वद्धा । वरि अणताणुचक्क० जह० डिदिउदी० जह० एयसमय, उक्क० अंतोसु० 1 णवरि जोदिमि० सम्म० मिच्छत्तभंगो | आणदादि णवगेवत्रा ति अणताणु ०४ जह० डिदिउदी० जह० एस० उक० संखेञ्ज समया । श्रजह० सव्वद्धा । अणुद्दिसादि सम्बडा ति सव्वपप० जह० ङ्किदिउदी० जह० एस० उक० संखेजा समया । अजह० सव्वद्धा । एवं जाव० । , , संख्यात समय है। अजघन्य स्थितिके उदीरकों का काल सर्वदा है। इतनी विशेषता है कि इनमें सम्यग्मिध्यात्वका भंग सामान्य मनुष्यों के समान है। मनुष्य अपर्याप्तकों में मिध्यात्व और नपुंसक वेद की जघन्य स्थितिके उदीरकों का जन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल धावलिके असंख्यात भागप्रमाण है। अजघन्य स्थितिके उदीरकों का जघन्य काल मिध्यात्वका एक समय कम एक भावलिप्रमाण है, नपुंसकवेदका अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्के असंख्यातवें भागप्रमाण है। सोलह कपाय और छह नोकपायोंका इसीप्रकार है। इतनी विशेषता है कि अजघन्य स्थिति उरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्के संख्यात भागप्रमाण है । ६८४. देवोंमें दर्शनमोहनीयत्रिकका भंग ओधके समान है। शेष प्रकृतियों की जघन्य स्थिति straint जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यात वें भागप्रमाण है । अजघन्य स्थिति के उदोरकों का काल सर्वदा है । इसीप्रकार भवनवासी और व्यन्तर देवों में जानना चाहिए। इसनी विशेषता है कि इनमें सम्यक्त्वका भंग मिथ्यात्व के समान है। ज्योतिषी देवोंसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें दर्शन मोहनी यत्रिका भंग ओके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जवन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अजवन्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धचतुष्ककी जवन्य स्थितिके उदीरकों का जयन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इतनी विशेषता है कि ज्योतिषी देवोंमें सम्यक्त्वका भंग मिध्यात्व के समान है। तथा आनतकल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक तक के देवोंमें अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थिति उदीरकों का जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अजघन्य स्थिति के उदीरकों का काल सर्वदा है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धिसकके देवोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति उदीरकीका जयम्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अन्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गातक
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy