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गा० ६२]
उत्तरपयडिद्विदिउदीरणाप पोसणं सव्वलोगे । सेमगदीसु सन्नपय० जह० अजह लोग० असंखे०भागे । एवं जाव० ।
६६०. पोमणं दुविहं-जह० उक्क० । उक्स्से पयदं ! दुविहो णि०श्रोघेण आदेसेण य । ओषेण मिच्छ०-सोलसक०-छपणोक० उक० द्विदिउदी. लोग० असंखे०भागो अट्ठ-तेरहचोदस० । अणुक० सव्वलोगो । सम्म० सम्मामि० उक० अणुक० लोग० असंखे०भागो अट्ठचोद्दस० । इत्यिवे०-पुरिसवे. उक० लोगस्स असंखे० अढचोइस० | अणुक० लोग० असंखे भागो अट्ठयोः सबलोगो वा । णवुसय० उक्क० हिदिउदी० लोग० असंखे० भागो तेरहचोइस० । अणुक सबलोगो।
स्थितिके उदीरक जीवोंका क्षेत्र सर्व लोकप्रमाण है। शेष गतियोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए।
३६६०. स्पर्शन दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्ट का प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्य सोलह, कपाय और छह नोकषायकी उत्कृष्ट स्थितियादिको जोवेचविसंग्रामासासामनराशाजथा त्रसनाली के चौदह भागों में से कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह भागप्रमाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिकं उदीरकाने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यम्मिथ्यात्यकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिक उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनाली के चौदह भागों से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थिति के उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनाली के चौदह भागों से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा प्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम पाठ भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नपुसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और वसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम तेरह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ—जो संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्व और सोलह कषायका उत्कृष्ट स्थिति बन्धकर पक श्रावलि काल बाद उक्त कर्मों की उदीरणा करते हैं उनके उक्त कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा होती है। यतः ऐसे जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन असनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह भागप्रमाण पाया जाता है, अत: उक्त प्रतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। इनकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदारणा एकेन्द्रियादि जीव भी करते हैं और उनका स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण है, अतः इनकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरकोंका स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण कहा है। छह नोकषायोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके उदारकों की अपेक्षा भी स्पर्शन उक्त प्रकारसे घटित कर लेना चाहिए। स्वामित्व सम्बन्धी विशेषता स्वामित्व अनुयोगद्वारसे जान लेनी चाहिए । यतः वेदकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्याष्टिका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण है, अतः सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्यकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरकोका स्पर्शन उक्तप्रमाण कहा