SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८६ . जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो. ६६३२. भय० जह• हिदिउदी. बारसक०-सत्तणोक० सिया उदी । जदि उदी, णिय० जहण्णा । सम्मत्तं हस्सोंगो । एवं दुगुकाए । ६६३३. इस्थिवे. जह. द्विदिउदी. बारसक० छण्णोक० सिया उदी। जदि उदी०, णिय० जहण्णा । सम्म० हस्सभंगो । एवं पुरिसवे । ६३४. सोहम्मीलाणेसु मिच्छ०-सम्मामि० देवोघं । सम्म० जह० द्विदिउदी बारसक०-छष्णोक. सिया उदी । जदि. उदी०, णिय. अजह• बिट्ठाणपदिदा संखे०भागब्भ० संखे०गुणन्महिया वा । एवं पुरिसवे । णवरि णिय० उदी० । १६३५. अणंताणुकोध० जह० ट्ठिदिउ० मिच्छ० णियः उदी० णिय० अजह. असंखेगुणब्भ० । तिण्हं कोधाणं पुरिसवे. णिय० उदी० णिय० अज० संखे गुणभ० । छण्णोक० सिया उदी. । जदि उदी०, णिय० अजह• संखेन्गुणभ०। एवं तिण्हं कसाया - आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ६३६. अपच्चक्खाणकोह० जह० द्विदिउदी० दोण्हं कोधाणं पुरिसवे० णिय. जानना चाहिए। इसीप्रकार अरति और शोककी जघन्य स्थिति उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। ६६३२, भयकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव बारह कषाय और सात नोकषायका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। इसके सम्यक्त्वका भंग हास्यके समान है। इसीप्रकार जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। ६६३३. स्लीवेदकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव बारह कषाय और छह नोकषायका कदाचित् बदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। इसके सम्यक्त्वका भंग हास्य के समान है। इसी प्रकार पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। ६६३४. सौधर्म और ऐशानकल्पमें मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग सामान्य देवकि समान है। सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव बारह कषाय और छह नोकषायका कदाचिन् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे संख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक द्विस्थानपतित अजघन्य स्थितिका उदीरक है । इसीप्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना वाहिए । इतनी विशेषता है कि इसका नियमसे उदीरक है। ६३५. अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है जो नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। तीन क्रोध और पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका दीरक है। छह नोकषायका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार तीन कषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणाको पुख्य कर सन्निकर्प जानना चाहिए । s६३६, अप्रत्याख्यान क्रोधकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव दो क्रोध और पुरुषवेदका
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy