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________________ गा०६२] उत्तरपडिष्टिविधारणाए सरिणयासो २७४ उदी० णिय जहण्णा । छण्णोक० सिया उदी । जदि उदी, णिय० जहण्णा | सम्म० रिणय० उदी० णिय० अज्ञ संख-गुणभः । एवमेकारसकमा । ६०९. हस्सस्स जह. विदिउदी. बारसक०-भय-दुगुंला. सिया उदी । जदि उदी०, णिय० जहण्णा । रदि-णबुस० णिय. उदी० मिय • जहष्णा । सम्मा० अपचक्खाणभंगो । एवं रदीए । एवमरदि-सोगाणं । :६१०. भय जह० द्विदिमुदी० सम्मा०-णस० हरसभंगो। बारसक०पंचणोक. सिया उदी० । जदि उदी०, णिय० जहण्णा । एवं दुगुंछाए । ६११. एस. जह. विदिउदी० सम्म हस्सभंगो । चारसक एणोकल सिया उदी० । जदि उदी०, णिय० जहण्णा । १६१२. सत्तमाए मिदम-सममाक्षि श्री शिलवेधांगर अणंडाशुभकोध० जह० द्विदिउदी० मिच्छ०-पण्णारसक० सत्तणोक. पिरयो । णवरि भय-दुगुंछा. सिया उदी० । जदि उदी. जण्णा चा अजहण्णा वा | जहण्णादो अजहण्णा का नियमसे उदीरक है जो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है । यदि उदीरक है तो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। सम्यक्तका नियमसे उदीरक जो नियमसे संख्यातगुणी अधिक प्रजघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार ग्यारह . कषायोंकी जघन्य स्थिति उदारणाको मुख्य कर सन्निप जानना चाहिए। ६६०६. हास्यकी जघन्य स्थितिका उदोरक जीव मारह कपाय, भय और जुगुप्साका कदाचिन् उदीरक है। यदि उदीरक है नो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। रात और नपुसकावेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। सम्यक्त्वका भंग अप्रत्याख्यानके समान है। इसीप्रकार रतिकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। इसीप्रकार अरति और शोकको जघन्य स्थितिउदारणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। 5६१०. भयकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीवके सम्यक्त्व और नपुसकवदका भंग हास्यके समान है। वह बारह कषाय और पाँच नोकषायका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए । ६११. नपुसकवेदकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीवक सम्यक्त्वका भंग हास्यके समान है। यह बारह कषाय और छह नोकषायका कदाचित उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। ६१२. सातवीं पृथिवीमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग सामान्य नारकियोंके समान है। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिके उदीरकके मिथ्यात्व, पन्द्रह कपाय और सात मोकपायका भंग सामान्य नारकियोंके समान है । इतनी विशेषता है कि भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य या अजघन्य स्थितिका उदीरक है। यदि अजघन्य स्थितिका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा एक समय अधिकसे लेकर एक
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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