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जयधवलास हिदे कसाय पाहुडे
[ वेदगो ७
पत्थि | आदेसेण रइय० मोह० उदीर० के० पोसिद ? लोगस्स असंखे० भागो चोभागा वा देणा । एवं सव्वषेरइय० । वरि सगोसणं । पढमाए खेत्तं । सव्वपंचिदियतिरिक्ख - सच्चमस० मोह० उदीर० लोग० असंखे ० भागो सम्बलोगो वा । वरि मणसतिए अगदी ० श्रधभंगो। सव्वदेवेसु उदीर अप्पप्पो पोस दव्वं । एवं जाव० । मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
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६३०. काला० दुविहो गि०- - ओघेण श्रादेसे० । केवचिरं ? सव्वद्धा । अमुदी० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० वरि मरणुसतियं मोत्तास्थापुदीरगा यत्थि । मरपुसअप खुद्दाभवग्गहणं, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । एवं जाव० ।
श्रघेण मोह - उदीर ०
एवं चदुसु गदीसु ।
मोह० उदी० जह०
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श्रसंख्यातवें भागप्रमाण है । इसीप्रकार तिर्यों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें श्रनुदरिक जीव नहीं हैं। आदेश से नारकियों में मोहनीयके उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके चौदह भागों में से कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसीप्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए । प्रथम पृथवीमें क्षेत्र के समान स्पर्शन है। सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यन और सब मनुष्य मोहनीयके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकका स्पर्शन किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिक अनुदीरकों का स्पर्शन श्रोघके समान है । सब देवोंमें उदीकोंका स्पर्शन अपने अपने स्पर्शनके समान ले जाना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए |
विशेषार्थ मोहनीयके अनुदीरक श्रेणिगत जीव होते हैं और उनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है, इसलिए यहाँ पर से अनुदीरकोंका स्पर्शन तत्प्रमाण बतला कर मनुष्यत्रिमें भी इसे श्रधके समान जाननेकी सूचना की है। श्रोघसे और गतिमार्गण के अवान्तर भेदोंमें जहाँ जो स्पर्शन है उसे ध्यान में रख कर सर्वत्र उदीरकों का स्पर्शन बतलाया है यह स्पष्ट ही है ।
३०. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— श्रघ और आदेश । श्रवसे मोहनीयके उदीरकोंका कितना काल है ? सर्वदा है । अनुदीरकोंका जघन्य काल एक समय है। और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिको छोड़कर अन्यत्र अनुदीरणा नहीं है। मनुष्य अपर्याप्तकों में मोहनीयके उदीरकोंका जघन्य काल तुल्लकभवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
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विशेषार्थ – नाना जीवों की अपेक्षा भी मोहनीकी अनुदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त बन जाता है, क्योंकि बहुतसे नाना जीव एक साथ उपशमश्रेणि पर आरोहण करके एक समय के लिए अनुदीरक होकर उदीरक हो जाँय यह भी सम्भव है और लगातार संख्यात समय तक उपशमश्रेणि पर आरोहण करके मरण के बिना वे उपशमश्रेण अन्तर्मुहूर्त काल तक उसके अनुदीरक बने रहें यह भी सम्भव है । यही कारण है कि यहाँ पर घ तथा मनुष्यत्रिककी अपेक्षा मोहनीयके अनुदीरकोंका जघन्य काल एक समय