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________________ २४२ जयधवलासहिदे कसायपाहुद्दे [वेदगो ५८२. आणदादि रणवत्रा ति मिच्छ० उक. द्विदिमुदी० सोलसक०भय-दुगुका सिया उदी । जदि उदी०, णियमा उक्क० । हस्स-रदि-पुरिसवेद. णियमा उदीरेदि, णिय० उक्क० । एवं सम्म० | णरि अर्णताणु चउक्कं णस्थि । ५८३. सम्मामि० उक० ट्ठिदिमुदीर० बारसक०-छण्णोक० सिया उदीर० । जदि उदी०, णिय. अणुक० असंखे०भागहीणं । पुरिसवे० णिय० उदी०, णिय. अणुक्क० असंखे० भागही । ६.५८४. अणूताणूकोधाव सावद्धिविरुदीरम्हामिछ०-तिष्णिकोध-हस्सरदि-पुरिसके० मिय० उदी०, णिय० उक० । भय-दुगुछ• मिच्छत्तभंगो । एवं विण्हं कसायाणं। ६५८५. अपच्चक्खाणकोध० उक० द्विदिमुदी० मिच्छ०-सम्म०-अणंतागु०कोध-भय-दुगुछ• सिया उदी० । जदि उदी० णियमा उकस्सा | दोएहं कोधाएं हस्स-रदि-पुरिसवे० णिय० उदी०, णिय० उक्तः । एवमेक्कारसक० । ६५८६. हस्सस्स उक्क० द्विदिमुदी. मिच्छ०-सम्म०-सोलसक०-भय-दुगुक० पागदशक (५८२. मानतकल्पसे लेकर नौ अवेयक तकके देवों में मिथ्यात्वको उत्कृष्ट स्थितिका । उदीरक जीव सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियम से उत्कृष्ट स्थितिका बदीरक है। हास्य, रति और पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदारणाको मुख्प कर सन्निकर्ष जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उदीरणा नहीं है। ६५८३. सम्यग्मिध्यात्यकी उत्कष्ट स्थितिका उदीरक जीव बारह कषाय और छह नोकषायका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे असंख्यातवें भागही अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। पुरुषवेदका नियमसे उनीरक है जो नियमसे असंख्यात भारहीन अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। ६५८४. अनन्तानुबन्धी क्रोधकी उत्कृष्ठ स्थितिका उदीरक जीव मिथ्यात्व, तीन क्रोध, हास्य, रति और पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदोरक है। इसके भय और जुगुप्साका भंग मिथ्यात्वके समान है। इसीप्रकार मान प्रादि तीन कषायों की उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। 1. अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक जीव मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, अनन्तानुबन्धी क्रोध, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि बदीरक है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। दो क्रोध, हास्य, रति और पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार ग्यारह कषायकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। ५८६. हास्यकी उत्कृष्ट स्थितिका सदीरक जीव मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सोलह कषाय,
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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