SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जामहाराज गा० ६२] सत्तरपयचिद्विदिउदीरणाए सरिणयासो २७१ णिय. उदी। ___६५७८. अर्णताणु०कोध० उक्क० द्विदिमुदीरें० तिण्हं कोधं स० णिय. उदी० णिय० उकसं शिणोकसिया दीदि जुदीः णियमा उक्कस्सं । मिच्छ० णिय० उदी० उक० अणुक्क० चा । उक्क० अणुक्क • समयूणमादि कादण जाव पलिदो० असंखे भागेणूणा । एवं पण्णारसक० । ५७९. हस्स० उक० हिदिमुदीरें सोलसक०-भय-दुगुंछ• सिया उदीरे० । जदि उदी० णिय० उक्कस्सं । मिच्छ० अणताणु०चउक्कभंगो । रदि-णवुम० णिय० उदी० णिय० उक० । एवं रदीए ! एवमरदि-सोगाणं । ५८०. भय-उक० विदिमुदीर० मिच्छ०-णवूस. हस्सभंगो । सोलसक०पंचणोक० सिया उदी० । जदि उदी, णिय० उक्क० । एवं दुगुबाए । ६५८१. गवुस० उक. विदिमुद्री० मिच्छत्त० हस्सभंगो । सोलसक.. छपणोक० सिया उदी० । जदि उदी०, णिय० उक० । एवं मणुसअपज्ज। इतनी विशेषता है कि वह इसका नियमसे उदीरक होता है। ६५७८. अनन्तानुबन्धी क्रोधकी उत्कृष्ट स्थितिफा उदीरक जीव तीन क्रोध और नपुंसमवेदका नियमसे उदीरक होता है जो नियमसे उत्कृष्ठ स्थितिका उदीरक होता है। छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक होता है । यदि उदीरक होता है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है । मिथ्यालका नियम उदीरक होता है जो उत्कृष्ट या अनुत्कृष्ट स्थितिका जदीरक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा एक समय कम स्थितिसे लेकर पल्य का असंख्यातवाँ भाग कम तककी अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है। इसीप्रकार पन्द्रह कपायकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। ६५७६. हास्यकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक जीव सोलह कपाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है । यदि उदीरक होता है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है। मिथ्यात्वका भंग अनन्तानुबन्धीचतुष्कके समान है। रति और नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक होता है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उहीरक होता है। इसीप्रकार रतिकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए । तथा इसीप्रकार भरत्ति और शोककी उत्कृष्ट स्थितिको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए । F५८०. भयकी उत्कृष्ट स्थितिके उद्दीरक जीवके मिध्यात्व और नपुंसकवेदका भंग हास्यके समान है। मालइ कपाय और पाँच नोकषायका कदाचित् उदीरक है । यदि उदीरक है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार जुगुप्साकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए । ५८१. नपुसकवेदकी उत्कृष्ट स्थिठिके उदीरक जीवके मिथ्यात्वका भंग हास्यके समान है। सोलह कषाय और छह नोकषायकी उत्कृष्ट स्थितिका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है. तो नियगसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिए।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy