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________________ 1 Τ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज गा० ६२ ] उत्तरपयडिट्टि दिउदीरणाए एय जीवेण अंतर २६५ ण स० णत्थि । इत्थवे० ज० जपणुक० एस० सम्म सम्मामिच्छत्तभंगो । ५६४. पंचि०तिरिक्ख अपज ० - मणुस अपज० मिच्छ०-कुस० जह० रात्थि अंतरं । अज० जह० उक० एस० । सोलसक० छण्णोक० जह० पत्थि अंतरं । अज० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । ० $ ५६५. मणुसतिए मिच्छ० सम्म० सम्मामि० श्रताणु०४ - रोक पंचि०तिरिक्खभंगो | अधवा सम्म० जह० जह० अंतोमु०, उक्क० पुन्नकोडिपुधत्तं । अक० जह० रात्थि अंतरं । अज० जह० एयस०, उक० पुत्रकोडी देखणा । चदुसंज० जह० जह० अंतोसु०, उक्क० पुन्चको डिपुभ्रतं । अज० जह० एयसमओ किडीवेदयस्य, उक० अंतोमु० । तिष्णिवेद० जह० जह० जह० अंतोमु०, उक० पुत्रको डिपुधत्तं । णवरि प ० इत्थवेद० णत्थि । मणुसिणी० पुरिस० णवु स० णत्थि | इथिवेद० अ० जह० उक० अंतोमु० | - ३ ५६६. देवेसु मिच्छ्र० सम्मामि० जह० द्विदिउदी० जह० पलिदो० असंखे ० भागो । अज० जह० अंतोमुद्दत्तं उक० दोन्हं पि एकतीसं सागरो० देखणाणि । स्त्रीवेदक उदीरणा नहीं है और योनिनीतियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेदको उदीरणा नहीं है। वेद जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है । सम्यक्त्वका भंग सम्यग्मिध्यात्व के समान है । - ६५६४. पश्चेन्द्रिय तिर्यन अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिध्यात्व और नपुंसकवेदी जघन्य स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है । सोलह कषाय और छह नोकपायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। ६५६५. मनुष्यत्रिक में मिध्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्स्त्र, अनन्तानुबन्धी चार और a नोकषायका मंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यक्षों के समान है। अथवा सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है। आठ कषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य स्थितिउदीरणाका अधन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण हैं । चार संज्वलनोंकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल कृष्टिवेदक के एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। तीन वेदोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है | इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है तथा मनुष्यनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी उदीरणा नहीं है । तथा स्त्रीवेदी अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । ६५६६. देवोंमें मिध्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है, अजघन्य स्थितिउदीरणाका अन्य अन्तरकाल ३४
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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