SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ देवगो 7 , जह० अंतोमु०, उक्क० उपोपरि । एवं सम्म० । णवरि जह० हिदिउदी ० णत्थि अंतरं । अथवा सम्म जह० डिदिउदी० जह० अंतोमु०, उक्क० उबड़पोग्गल परियहं । श्रताणु०४ जह० हिदिउदी० जह० अंतोमु० टक्क० असंखेजा लोगा । जह० जह० एयस०, उक० छावद्विसागरो० देखणाणि । एवमद्रुक० | वरि ज ० जह० एस० उक्क० पुव्वकोडी देखणा । एवं भय-दुर्गुबा० । णवरि ज० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । चदुसंजल० जह० डिदिउदी ० जह० अंतोमु०, उक० उबड्डूपोग्गल परिथङ्कं । अज० जह० एयस०, उक्क० अंतोनु० । इत्थवे० - पुरिसबे० जह० द्विदिउदी० जह० अंतोमु०, उक० उचढपोग्गलपरियहूं । ज० जह० अंतोमु०, पुरिसवे एयस० उ० अतकालमसंखेजा पोग्गल - सरक० सागरोवमसदपुधत्तं । हस्स -रदि० जह० विदिउदी ० जह० पलिदो० असंखे० भागो, उक० अतकालमसंखे० पोग्गल परियट्टा । अज० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीस सागरो० ० , परिषड्डा AAM स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपाधपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । इसीप्रकार सम्यक्त्वके विषय में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जघन्य स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है। अथवा सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पापुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त हैं और उत्कर अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जवन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम दो बासठ सागरप्रमाण है। इसीप्रकार आठ कपायोंके विषय में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अजवन्य स्थितिउदीरणा का जघन्य अन्तरकाल एक समय है, और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है । इसीप्रकार भय और जुगुप्सा के विषय में जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि अजघन्य स्थिति वीरा का जघन्य अन्तरकाल एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। चार संज्वजनकी जघन्य स्थितिउदीरणा का जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्थपुलपरिवर्तनप्रमाण हूँ । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जधन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त हैं और उत्कृष्ट अन्तरकाल उर्धपुद् गल परिवर्तनप्रमाण है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त हैं और पुरुषवेदका एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दोनोंका अनन्तकाल है जो असंख्यात मुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । इसीप्रकार नपुंसकवेदके विषय में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ सागर पृथक्त्व प्रमाण है। हास्य और रतिकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल है जो असंख्यात पुदल परिवर्तनप्रमाण है। अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तरकाल खाधिक तास सागर
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy