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________________ २५७ गा० ६२ ] उत्तरपय डिडिदिउदीरणाए एयजीवेण अंतरं एयस०, उक० तिष्णि पतिदोचाम चिकखान ०४इथिवे ० - पुरिसवे० श्रघं । श्रक० श्रोधं । णवरि अणुक० जह० एयस०, उक्क० अंनो | वसवे० ग्रोधं । णवरि अणुक० जह० एयस०, उक्क० पुन्त्रको डिपुधतं । इण्णोक० उक० श्रोषं । अणुक० जह० एयस०, उक्क० अंतोनुः । एवं पंचिंदिय. तिरिक्खतिय० । वरि सचपपडी० उक० द्विदिउदी० उक० पुच्चकोडिपुधत्तं । सम्म० सम्शमि० अ० जह० एयस० अंतोमु०, उक्क० निष्णि पलिदो० पुन्त्रकोडिपुत्र० । तिणिवेद उक्क० अणुक० जह० एस० उ० पु०नकोडिपुध० | पज० इस्थि० खन्थि । जोणिणीसु पुरिस० इथिवे० अणुक० जह० ० , स० प्रत्थि एम०, उक्क० आवलिगा । ६५५४, पंचिदियतिरिक्खा पञ्ज० मणुसका पञ्ज० मिच्छ० णवंस० उक्क ० अणुक० डिदिउदी० णत्थि अंतरं । सेसपयडी० उक० डिदिउदी० णत्थि अंतरं । अणुक० डिदिउदी० जह०णुक० अंतोमु० । - इतनी विशेषता है कि अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तीन पल्य है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व अप्रत्याख्यानावरण चार, स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भंग ओधके समान है। आठ कषायका भंग श्रोध के समान है । इतनी विशेषता है कि इनकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। नपुंसक वेदका भंग ओके समान हैं। इतनी ' विशेषता है कि इसकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिप्रथक्त्व प्रमाण हैं । छड़ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका भंग के समान है । अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चनिकमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सब प्रकृतियों को उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्प्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल क्रमसे एक समय और अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिप्रयक्त्व fedia पल्य है। तीन वेदोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। पर्याप्तकों में arathi उदीरणा नहीं है तथा योनिनीतिर्योंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी उदीरणा नहीं है। स्त्रीवेदी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक अवलिप्रमाण है। विशेषार्थ यहाँ योनिनीतिर्यञ्चोंमें स्त्रीवेदक अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जो उत्कृष्ट अन्तरकाल एक आवलि बतलाया है उस स्थितिविभक्ति भाग ३, पृ० ३२० को देखकर घांटत कर लेना चाहिए। तथा इसीप्रकार अन्य विशेषता भी जाननी चाहिए । A ६५५५. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिथ्यात्व और नपुंसक वेद की उष्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है । शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है। अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त हैं । ३३
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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