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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो७ उदीरगा, अणुदीरगा गस्थि | एवं सव्वणेरइय-सव्यतिरिक्त्र-सव्वदेया त्ति । मणुसअपञ्ज० मोह. सिया उदीरगो सिया उदीरगा । एवं जाव० । २६. भागाभागाणु० दुविहो णि-~ोषेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उदी० सन्बजी० केवडियो भागो ? अणंता भागा। अणुदीर० अणंतभागो । मणुसेसु उदीरंगा असनेमभागाआडी मिगसासो हासाघुसपञ्ज -मणुसिणी मोह. उदी० केवडि० ? संखेज्जा भागा। अणुदी० संखेजदिभागो । सेसगइमागणासु पत्थि भागाभागो । एवं जाव० । हैं। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। प्रादेशसे नारकियोंमें मोहनीयके सब जीव उदीरक हैं, अनुदीरक नहीं हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यश्च और सब देवोंमें जानना चाहिये । मनुष्य अपर्यामकोंमें मोहनीयका कदाचित् एक जीव उदीरक है। कदाचित् नाना जीव उद्दीरक हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ-जितने काल तक एक भी जीव श्रेणी पर आरोहण कर एक श्रावलि प्रत्रिष्ट सूक्ष्मसाम्पराय नहीं होता उतने काल तक सब संसारी छमस्थ जीव मोहनीयके उदीरक ही होते हैं, इसलिए तो कदाचित् सब जीव मोहनीयके जदीरक होते हैं यह वचन कहा है । तथा जब नाना जीव श्रेणी पर आरोहण नहीं करते, किन्तु एक जीव उस पर आरोहण कर एक श्रावलि प्रविष्ट सूमसाम्पराय या उपशान्तकपाय हो जाता है, नब नाना जीव मोहनीयके उदीरक और एक जीव अनुदीरक होता है, इसलिए कदाचिन् नाना जीव मोहनीयके उदीरक और एक जीव अनुदीरक होता है यह वचन कहा है। तथा जब नाना जीव श्रेणी पर आरो• हण कर एक श्रावलि प्रविष्ट सूक्ष्मसाम्पराय और उपशान्तकपाय हो जाते हैं तब नाना जीव मोहनीयके उदीरक और अनुदारक दोनों प्रकारके पाये जाते हैं, इसलिए यहाँ पर कदाचित् नाना जीव मोहनीयके उदीरक और नाना जीव मोहनीयके अन्दीरक होते हैं यह वचन कहा है । यह औषप्ररूपणा है जो मनुष्यत्रिकमें भी बन जाती है, इसलिए मनुष्यत्रिकमें श्रोधके समान जाननेकी सूचना की है। इनके सिवा गतिमार्गणाके अन्य जितन भेद हैं उनमें सब जीव मोहनीयके उदीरक ही होते हैं, इसलिए मोहनीयके सब जीव दीरक होते हैं, अनुदीरक नहीं होते यह वचन कहा है । मात्र मनुष्य अपर्याप्त यह सान्तर मार्गणा है। इसमें कदाचित् एक जीव होता है और कदाचित नाना जीव होते है, इसलिए मनुष्य अपर्याप्रकोंमें कदाचिन् एक जीव उदीरक होता है, और कदाचित् नाना जीव दीरक होते हैं यह वचन कहा है। २६. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोष ओर आदेश । आघस मोहनीयके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण है ? अनन्त बहुभागप्रमाण हैं। अनुदोरक जीव अनन्तमें भागप्रमाण है। मनुष्यों में उदोरक जीव असंख्यान बहुभागप्रमाण हैं और अनुदारक जींच असंख्यात भागप्रमाण हैं ? मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंमें मोहनीयके उदीरक जीव कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यात बहुभागप्रमाण हैं तथा अनुदोरक जोव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। शेष गति मार्गणाके भेदॉमें भागाभाग नहीं है। इसी प्रकार अनाहारक .. मागणातक जानना चाहिए। . विशेषार्थ-आगे घिसे और गति मार्गणाके अवान्तर भेदोंमें माहनीयके उदीरकों और अनुदीरकोंके परिमाणका विचार किया है, उससे भागाभागका झान हो जाता है, इसलिए यहाँ पर अलगसे खुलासा नहीं किया है।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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