________________
अयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[वेदयो ५३५. प्रादेसेण गैरइय० मिच्छ०-णवुस०-अरदि-सोग० उक्क० विदिउदी० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । सम्म० उक्क० द्विदिउदी० जह० टक्क० एयस० | अणुक० जह• एयस०, . उक्क० तेत्तीसं सागरोवमं देणं । सम्मामि०-सोलसक०-मय-दुगुंछा० अोघ । हस्स-रदि. उक्क द्विदिउदी० जह० एयस०, उक. आवलिया । अणुक्क० जह• एगस०, उक्क० अंतोमु । एवं सत्तमाए । एवं पढमाए जाव छट्टि त्ति | परि समद्विदी । अरदि. सोग० डक्क० अणुक० द्विदिउदी. जह० एयस०, उक्क० अंतोमु०।
लेना चाहिए। इन चारों प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाके जघन्य और उत्कृष्ट कालका कथन सुगम है। मात्र स्त्रीवेद और पुरुषवेदका अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाके जघन्य कालके फथनमें जो विशेषतासिकागेअचानेशालेविधिमासिएशोकपीरमपुसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल भय-जुगुप्साके समान घदित कर लेना चाहिए | अरति और शोककी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय भी यथा सम्भव उसी प्रकार घटित कर लेना चाहिए । अरति और शोककी अनुत्कृष्ट उदोरणाका उत्कृष्ट काल जो साधिक तेतीस सागर बतलाया है उसका कारण यह है कि नरकमें गमनके पूर्व इनकी उदीरणा होने लगी और वहां तेतीस सागर कालतक इनकी चदीरणा होती रही। इसप्रकार यह काल बन जाता है । जो जीव नपुसकवेदसे उपशमश्रेणिपर आरोहण कर उतरते समय । एक समय तक नपुंसकवेदका उदीरक हुआ और दूसरे समयमें मरकर देव हो गया उसके । नपुसकवेदकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जपन्य काल एक समय प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। इसीप्रकार स्त्रीवेदकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका एक समय जघन्य काल घटित कर लेना चाहिए । मात्र पुरुषवेदका भवके अन्तिम समयमें एक समयके लिए अनुत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा कराकर यह काल लाना चाहिए। नपुसकवेद और स्त्रीवेदका यह काल इसप्रकार भी प्राप्त किया जा सकता है। एकेन्द्रियोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति अनन्त काल है, इसलिए इसकी मुख्यतासे नपुसकवेदकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट काल सत्प्रमाण
१५३५. आदेशसे नारकियों में मिथ्यात्व, नपुसकवेद, अरति और शोककी उत्कृष्ट स्थितिउदौरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है। सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका भंग ओघके समान है। हास्य और रतिको उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल एक श्रावलि है। अनुस्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूते है। इसीप्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए। इसीप्रकार पहली पृथिवीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें जानना । चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। अरति और शोककी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जपन्य फाल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।