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________________ २५० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ गस्थि । अागदादि णवगेवला त्ति सणकुमारभंगो। णयरि अणंताणु०४ जह० हिदिउदी० कस्स ? अण्णद. जो वेदयसम्माइट्ठी चउवीससंतकम्मिो उकस्साउद्विदीए उबवण्णो मिच्छत्तं गंतूण अणंताणु०४ संजोजित्ता चरिमसमयणिप्पिदमाणयस्स तस्स जह० द्विदिउदी० । अणुदिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म बारसक-मत्तणोक० आणदभंगो । एवं जाव० । ५३४. कालाणु० दुविहो णि०--जह० उक्क० । उकस्से पयदं । दुविहो णि-ओघेण आदेसेण य । अोघेण मिच्छ० उक्क० द्विदिउदी० जह० एगस०, मर्यानंतोमुभानामछिजिएट अतोमुहान उक्क. अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । सम्म० उक्क० द्विदिउदी० जह० उक्क० एयस० । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० छावहिसागरोवमाणि देसूणाणि । सम्मामि० उक० विदिउदी० जह. उक्क० एयस० । अणुक० जह० उक० अंतोमु० । सोलसक०-भय-दुगुंछ ० उक्क० अणुक्क० जह० एगसमो, उक्क० अंतोमु० । इत्थिवेद-परिसवेद० उक्क० हिदिउदो० जह० एस०, उक्क० श्रावलिया० । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० पलिदोयमसदपुधत्तं सागरोवमसदपुधत्तं । हस्स-रदि० उ० द्विदिउदी० जह• एयस०, उक्क० जघन्य स्थिति उदीरणा होती है। इन दोनों फल्पोंके ऊपर स्लोवेदकी उदीरणा नहीं है। श्रानत कल्पसे लेकर नौ चेयक तकके देवामें सनत्कुमार कल्पके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्कफी जघन्य स्थिति उदारणा किसके होती है ? जो अन्यतर चौबीस कर्मों की सत्तावाला वेदकसम्यग्दृष्टि जीव उत्कृष्ट मास्थितिवालोंमें उत्पन्न हो और मिथ्यास्त्रमें जाकर तथा अनन्तानुबन्धीचतुष्कका संयोजन कर वहांसे निकलनेके अन्तिम समयमें स्थित होता है उसके जघन्य स्थिति उदीरणा होती है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवा में सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकपायोंका भंग आनत कल्पके समान है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ५४. कालानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । श्रोघसे मिथ्यात्वी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थिनिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समर है। अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ सागरप्रमाण है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिउदोरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। सोलह कषाय, भय और जुगुप्ताकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहत है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थिति नदीरणा का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल एक प्रावलि है। अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल क्रमसे सौ पृथक्त्त पल्यप्रमाण और सौ पृथत सागरप्रमाण है। हास्य और रतिकी उत्कृष्ट स्थिति उदार|का जघन्य काल एक समय है और
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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