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________________ गो० ६२ ] उत्तरपडणार सामित्तं २३८ पडीओ अस्थि नासि द्विदिसंक्रमभंगो । मणुसतिए जाओ पयडीओ अस्थि तारिमोघं । एवरि बारसक० मय- दुगुंद्र० जह० हिदिउदी - करम ? अण्णद० बादरेइंदियपच्छायदहदसमुष्पत्तियस्स आवलियउवण्णल्लयस्य तस्स जह० । हस्त-रदि- अरदिसोग० तस्सेव पर अनोमुत्तुववल्लयस्य । ५३२. देवां णारयभंगो । वरि इत्थवे० - पुरिसवे० - हस्सनइ श्ररइ सोग० असष्णिपच्छायदहदसमुत्पत्तियस्स अंतो मुहुत्तु ववष्णल्लयम्स । एवं भवण० - त्राणवें । वरि सम्म० विदियपुढविभंगो । जोदिसि बिदियपुढविभंगो | णवरि एवं सयं छंडेऊण इत्थवेदे पुरिसवेदे भारिणदयं । C $ ५३३. सोहम्म० जाव सहस्सार चि दंसणतियमोघं । अरांता ०४ विदियपुढविभंगो | वारसक० सत्तणोक० जह० डिदिउदी० कस्स ? अण्णद० जो खड़यसम्माडी उसम सेढिपद्रापदो दीहाए आउट्ठदीए उबवण्णो तस्स चरिमसमयणिष्पिदमाणस जह० हिदिउदी० । वरि सोहम्मीसारखे इत्थिचे० जह० डिदिउदी० कस्स ? जो पणवणं पलिदोवमिसु उपाय अंतोमुत्र शिंबाणु ०चटकं विसंजोएदृण चरिमसमयणिप्पिदमारायस्स तस्स जह० । उवरि इथिवे ० मनुष्य पर्यातकों में जो प्रकृतियाँ हैं उनका भंग स्थितिसंक्रमके समान है। मनुष्यत्रिक में जो प्रकृतियाँ हैं उनका भंग ओके समान है। इतनी विशेषता है कि बारह कपाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणा किसके होती है ? जिसे अन्यतर हृतसमुत्पत्तिक बादर एकेन्द्रियोंमें से आकर उत्पन्न हुए एक आवलि काल हुआ है उसके जघन्य स्थितिउदीरणा होती है। तथा उसके पर्याप्तकों में उत्पन्न हुए अन्तर्मुहूर्त होनेपर हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणा होती है । ६५३२. देवोंका भंग नारकियोंके समान है । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य रति, अरति और शोककी जघन्य स्थितिउदीरणा जिसे इनसमुत्पत्तिक असंज्ञियोंमेंसे आकर उत्पन्न हुए अन्तर्मुहूर्त हुआ है उसके हाती है। इसीप्रकार Hai और व्यन्तर देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें सम्यक्त्वका भंग द्वितीय पृथिवीके समान है । ज्योतिषी देवों में दूसरी पृथिवी के समान भंग है। इतनी विशेषता है कि नपुंसकचेदको छोड़कर स्त्रोवेद और पुरुषवेद कहलाना चाहिए । ५३३. सौधर्मकल्प से लेकर सहस्रार कल्पतकके देवों में दर्शनमोहनीयकी तीन प्रकृतियों का भंग श्रोघके समान है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग दूसरी पृथिवीके समान है । बारह कषाय और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणा किसके होती है ? जो अन्यतर क्षायिक सम्यम्द्रष्टि जीव उपशमश्रेणिले पीछे आकर दीर्घ चास्थितिवाले उक्त देवों में उत्पन्न हुआ उसके वहाँसे निकलते हुए अन्तिम समयमें जघन्य स्थितिउदीरणा होती है। इतनी विशेषता है कि सौधर्म और ऐशानकल्पमें स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणा किसके होती है ? जो पचवन पन्याले स्त्रीवेदियों में उत्पन्न हुआ, पुनः अन्तर्मुहूर्त में सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ, पुनः अनन्तानुबन्धचतुष्क की विसंयोजना करके वहाँ से निकलनेके अन्तिम समयमें स्थित है उसके
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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