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________________ २३४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेवगो. पुरिस०-णस. त्थि । देवाणं णारयभंगो । णवरि णवूम. णस्थि । एवं भवणावाण३० । रणवरि सम्म० सम्मामि भंगो। जोदिसि० मिच्छ-सम्म० सम्मामि० विदियपुढविभंगो। सोलसक-अहणोक. जह० द्विदिउदी. अंतोकोडाकोडी । एवं सोहम्मीसाणे । णवरि सम्म० ओघ । सणक्कुमारादि जाव णवगेवजा ति एवं चेव । पवरि सियदि परिवादी सविधादिसादि सघट्टा ति सम्म० ओघ । बारसक०. सत्तणोक० जह० विदिउदी० अंतोकोडाकोडि ति । एवं जाव० | 3 ५२४. सन्युदीर०-गोसब्बुदीर०-उक०-अणुक-जह०-अजह उदीर० मूलपयडिमंगो। ५२५. सादि-श्रणादि०-धुवक-अर्द्धवाणु० मिच्छ. उक्कल-अणुक०-जह• किं सादि०४ १ सादि-अधुवा । अज० किं सादि०४१ सादी अणादी धुवा अधुवा वा | सेसपयडीणमुक्क० अणुक० जह० अजह. किं सादि० ४ १ सादि-अधुवा । सेसगदीसु सन्त्रपय० उक्क० अणुक्क, जह• अजह. सादि-अधुवा० । स्थितिउदीरणा नहीं है। मनुष्यमियोंमें पुरुपवेद और नमुसकवेदकी स्थितिउदीरणा नहीं है। देवोंमें नारकियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें नपुसकवेदकी स्थितितदीरणा नहीं है । इसीप्रकार भवनवासी और व्यन्तरोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें सम्यक्त्वका भंग सम्यग्मिथ्यात्वके समान है। ज्योतिषियों में मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग दूसरी पृथिवीके समान हैं। सोलह कषाय और आठ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणा अन्तःकोड़ाकोड़ी है। इसीप्रकार सौधर्म और ऐशानकल्पमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वका भंग श्रोधके समान है। इसीप्रकार सनत्कुमार कल्पसे लेकर नौवें प्रवेयक सकके देयों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेदकी नदीरणा नहीं है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितफके देवोंमें सम्यक्त्वका भंग ओघके समान है। बारह कषाय और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणा अन्तःकोदाकोहीप्रमाण है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। १५२४. सर्व स्थितिजदीरणा, नोसर्व स्थिति उदारणा, उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा, मनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणा, जघन्य स्थितिउदीरणा और अजघन्य स्थितिउदीरणाका भंग मूलप्रकृतिके समान है। ५२५. सादि, अनादि ध्रुव और अधुवानुगमकी अपेक्षा मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य स्थिति उदीरणा क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या श्रध्रुव है ! सादि और अध्रुव है। अजघन्य स्थितिउदीरमा क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या अध्रुव है ? सादि, अनादि ध्रुव और अध्रुव है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और मजघन्य स्थितिउदीरणा क्या सादि है, अनादि है, ध्रुय है या अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। शेष गतियों में सब प्रकृसियोंकी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य स्थितिउदीरणा सादि और अध्र व है।। विशेषार्थ- ओघसे मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणा कादाचित्क है तथा इसकी जघन्य स्थितिउदीरणा ऐसे जीवके होती है जो उपशमसम्यक्त्रके सन्मुख होकर एक समय अधिक एक श्रावलिप्रमाण स्थितिके शेष रहनेपर पावलिकी उपरिवनपर्ती प्रथम
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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