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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिउदीरणाप ठाणाणं पदणिक्लेवपरूवणा २२१ उकस्सयं द्विदिखंडयं हणदि, तस्स उकहाणी । एवं चदुगदीसु | गवरि पचितिरिक्खअपज-मणुसअपज० उक्क० वड्डी कस्स ? अण्णद. तपाओग्गजहण्णहिदिमुदीरेमायो तप्पाओग्गुउकस्सविद्धि पत्रद्धो तस्स आवलियादीदस्स उक्क०वड्डी । तस्सेव से काले उक्क० अबट्ठा० । उक० हाणी कस्स ? अण्ण तिरिक्खो वा मणुसो उक्कस्सटिदिमुदीरमाणो उक्कस्मयं द्विदिखंडयं पादयमाणो अपजत्तएसु उवयपणो तस्स पढमे द्विदिखंडये हदे तस्स उकहाणी० । आणदादि गवगेवजा ति उक्क हाणी कस्स ? अण्णद० तप्पाओग्गुक्कस्सटिदिमुदीरेमाणो पढमसम्मत्ताहिमुद्दो जादो तेण पढमे द्विदिखंडए हदे तस्म उक्क०हाणी० । अणुदिसादि सम्बट्ठा ति उक्क हाणी कस्स ? अण्णद० चेदयसम्माइटिस्स अणंताणुबंधी विसंजोएतस्स पढमे द्विदिखंडए हदे तस्स उहाणी | एवं जाव। ४९३. जह० पयदं | दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । श्रोषेण मोह० जाहवड्डी कस्स ? अण्णद० जो समयूणमुक्कस्सविदिमुदीरेमाणो उक्कस्सविदिमुदीरेदि तस्स जहचड्डी। जहहाणी कस्स ? अण्णद० जो उक्कस्सद्विदिमुदीरमाणो समयूणद्विदिमुदीरेदि तस्स जहहाणी । एगदरस्थावट्ठाणं । एवं चदुगदीसु । णवरि आणदादि जीव उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका हनन करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। इमीप्रकार चारों गतियों में जानना चाहिए । इसनो विशेषता है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में उत्कृष्ट वृद्धि, किसके होती है। तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिकी उदीरणा करनेवाला अन्यतर जो जीव तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करता है, एक श्रावलिके बाद उसके उत्कृष्ट वृद्धि होती है । लसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है | उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? उत्कृष्ट स्थितिकी उदारणा करनेवाला जो अन्यतर लियंञ्च या मनुष्य उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका घात करता हुश्रा अपर्यापकोंमें उत्पन्न हुआ, उसके प्रथम स्थितिकाण्डकका घात करने पर उत्कृष्ट हानि होती है। प्रानतकल्पसे लेकर नौ अवेयक तकके देषामें उत्कृष्ट हानि किसके होती है । जो तस्त्रायोग्य उत्कृष्ट स्थिनिकी उदीरणा करनेवाला अन्यतर जीव प्रथम सम्यक्त्वके अभिमुख है उसके प्रथम स्थितिकाण्डकके घात करने पर उत्कृष्ट हानि होती है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवों में उत्कृष्ट हानि किसके होती है ! अन्यतर जो वेदकसम्यग्दृष्टि जीव अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना कर रहा है उसके प्रथम स्थितिकाण्डकके घात करने पर उत्कृष्ट हानि होती है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । ४६३. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है—ोष और आदेश । ओघसे मोहनीयकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? अन्यतरजो एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा करनेवाला उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा करता है, उसके जघन्य वृद्धि होती है। जघन्य हानि किसके होती ? अन्यतर जो उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा करनेवाला एक समय कम स्थितिकी उदीरणा करता है उसके जघन्य हानि होती है। इसमेंसे किसी एक जगह जयन्य अवस्थान होता है। इसीप्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि आनतल्पकसे
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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