SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सावाद्यासागर जी महारा ܝܐ गा० ६२] उत्तरपयडिउदीरणाए ठाणाणं भुजगारपरूवणा २१६ असंखे०भागो। अप्प०-अवडि. जह० एगस०, उक० पलिदो० असंखे०भागो। आयदादि सन्वट्ठा ति अप्प० सव्वद्धा । एवं जाव० । ४८६. अंतराणु० दुविहो णि-पोषेण आदेसे० । ओघेण तिएहं पदारणं 'यादशथि श्रृंत अवतजाः एयसका उक. वासपुधत्तं । एवं तिरिक्खेसु । णवरि अवत्त० णस्थि । ओदेसेण परइय० भुज. जह० एयस०, उक० अंतोमु० । अप्प०अवढि णस्थि अंतरं । एवं सम्बणेरइय० सम्वपंचिदियतिरिक्ख-देवा जाव सहस्सार त्ति । मणुसतिए शारयभंगो। रणवरि अवत्त० ओघ । मणुसअपञ्ज. सव्वपदा जह० एयस०, उक० पलिदो० असंखे०भागो। प्राणदादि सबट्टा ति अप्प० गस्थि अंतरं । एचं जावः । $ ४८७. भावाणुगमेण सव्वस्थ प्रोदइयो भावो । ६४८८. अप्पाबहुआणु० दुविहो णि०-प्रोघेण आदेसे० । ओघेण सम्वत्थो० अवत्तक । भुज० अरणंतगुणा । अवद्वि० असंखे०गुणा | अप्प० संखे गुणा ! ४८९. श्रादेसेण णेग्इय. सपत्थो० भुज० । अवढि० असंखे०गुणा । और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अल्पतर और अवस्थितस्थितिके उदीरकों का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्य के असंख्यात भागप्रमाण है । बानतकल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवों में अल्पतरस्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जाना चाहिए। ६४८६. 'अन्तगनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-प्रोध और आदेश । ओघसे तीन पदोंके उदीरकोका अन्तरकाल नहीं है। प्रवक्तव्यस्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है। इसीप्रकार तिर्यश्चोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें प्रवक्तव्यपद नहीं है। आदेशसे नारकियोंमें भुजगारस्थितिके उदीरकोका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहर्त है। अल्पतर और अवस्थित स्थितिके उदीरकोका अन्तरकाल नहीं है। इसीप्रकार सत्र नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय नियंञ्च और सामान्य देवोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए । मनुष्यत्रिकमें नारकियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें प्रवक्तव्यपदका भंग श्रोधके समान है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब पदोंके उद्दीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्पके असंख्यातबै भागप्रमाण है। आनतकल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धिठकके देवों में अल्पतरस्थितिके उदीरकों का अन्तरकाल नहीं है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । ४८७. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र श्रीदयिक भाव है।। ८. अल्पबहुत्वानुगमी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्राप और आदेश । ओघसे प्रवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे भुजगारस्थिति के उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे अयस्थितस्थिति के उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतरस्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। १४८६. आदेशसे नारकियोंमें मुजगारस्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy